फूलों से पूछा,
मुश्कान कैसे पायी,
सुसजीली देह
तुमने कैसी सजाई
मोह लेते मन
निष्ठुर का भी तुम
प्रेम की यह कला,
तुममे कैसे आयी??
फूल बोले,
लाख दर्दों और झंजावातों को झेलकर,
जीवन ज्योति,
हम अपनी जगाते हैं,
प्रकृति के थपेड़े
खाकर भी मुश्काराते हैं,
दो दिन की,
ही सही, जिंदगी हमारी,
फिर भी लाखो
दिलों को जीत जाते हैं.
तुम इन्शानो ने
धरती क्या, नभ भी जीत लिया,
स्वस्वार्थ के
बसीभूत, सबको को अपने बश में किया,
लेकिन जीवन की
सच्चाई, तुम जान न सके,
इसलिए मुश्कान
तुम पा न सके....
फूलों से पूछा,
मुश्कान कैसे पायी,
सुसजीली देह
तुमने कैसी सजाई
मोह लेते मन
निष्ठुर का भी तुम
प्रेम की यह कला,
तुममे कैसे आयी??
फूल बोले,
लाख दर्दों और झंजावातों को झेलकर,
जीवन ज्योति,
हम अपनी जगाते हैं,
प्रकृति के थपेड़े
खाकर भी मुश्काराते हैं,
दो दिन की,
ही सही, जिंदगी हमारी,
फिर भी लाखो
दिलों को जीत जाते हैं.
तुम इन्शानो ने
धरती क्या, नभ भी जीत लिया,
स्वस्वार्थ के
बसीभूत, सबको को अपने बश में किया,
लेकिन जीवन की
सच्चाई, तुम जान न सके,
इसलिए मुश्कान
तुम पा न सके....
रचना -: बलबीर राणा
" अडिग"
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