ओ !!!
ममता
कैसी जडवत जकडन तेरी
जीवन पर,
मानव् तो मानव,
दानव भी तेरी मुठ्ठी में,
प्राणी धरा के
तेरे अलर्गन में बसीभूत,
साम्राज्य तेरा,
भूलोक क्या पातळ लोक तक,
ममता तेरी नियति…….
प्रेम में तपिश,
दया में करुणा,
विछोह में बिरह,
यादों के समन्दर में
तेरी पतवार जिगर को खेती,
आश मिलन की जगाती,
धन्य ममता तेरा प्रताप,
तू नहीं होती
रेगिस्तान होता जीवन…..
© सर्वाध सुरक्षित .........बलबीर राणा “अडिग”
२२ जुलाई २०१३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें