स्वतंत्र भारत में जीने का
अर्थ दे दो
भारत का आम आदमी हूँ मेरा
हक़ दे दो
मुझे मुक्ति चाहिए मुक्ति
दे दो,
दोगुले नेताओं से
प्रपंची कटाक्ष से
दो धारी राजनीति से
भ्रष्टाचार रुपी दानव से
घूसखोर अधिकारी से
दो मुंहें व्यवहार से
धार्मिक भटकाव से
सांप्रदायिक टकराव से
स्वतंत्र भारत में जीने का
अर्थ चाहिए
मै अपने ही देश में
असुरक्षित हूँ सुरक्षा चाहिए
बोली में राष्ट्र भाषा की
सड़क पर नारी की
संस्कृति में संस्कारों की
भूके गरीब के लिए रोटी की
प्रकृति में पर्यावरण की
विश्व की बृहद संसद क्या
गांधी के सपनो का भारत दे सकोगे ?
या कुरसी पर बैठ अनाचरण की
चरमता पार करोगे ?
२ अगस्त २०१३
© सर्वाध सुरक्षित
... बलबीर राणा “अडिग”
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