प्रवृति धोखे फरेब की हो
हिम्मत नहीं सामने से मुकाबले की हो
वार पीठ पर ही करेगा, ये हम क्यों भूल जाते
फिर भी दोस्ती की पींगे बढाने चले जाते
नापकों की प्रकृति बदलने का चलन नहीं चलने वाला
दूध पिलाने से भी, जहर फेंकने का स्वभाव नहीं बदलने वाला
डंक मार कर बिल में घुस जाना बंद नहीं हो सकता,
बिषधर मित्र नहीं हो सकता.
कब तक शहीदों की चिता सजाते रहेंगे,
सटे साटयम का शूत्र कब समझेंगे,
बीर जाबांजो को भी पंगु बना दिया,
इस पंगु नेतृत्वा से कब निजात पायेंगे.
......... २८ सितम्बर २०१३
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