शनिवार, 28 सितंबर 2013

मैं अभस्त हूँ



मैं अभस्त  हूँ ...........
कंटक भरी राहों में चलने का,
आमावास्य की रात में चमक देखने का,
रंगभरी हरी-भरी वादियों में,
विरह गीत गाने का,
मैं अभस्त  हूँ .........
तपती रेत में, नंगे पाँव चलने का,
बारह महीने शिशिर ऋतु में,
ठिठुरने का,
आंशुओं को, पलकों में रोकने का,
प्रेम का सरोवर जीवन में होकर भी,
प्यासा रहने का,
फिर भी!
तृप्त है  मन,
जिजीविषा की इन  कटंकी राहों पर,
लेकिन प्रिय?
तूने क्यों उठाया बीड़ा,
मेरे संग इस राह में सहचर्य निभाने का,
क्या ये मेरी प्रीत का कर्ज है,
या..............
जिगर पर प्रेम का मर्ज है,
चलो जो भी हो,
तेरे सानिंध्य ने मेरी अभस्त अडिगता,
को और अडिग बना दिया       
 ...........५ अगस्त २०१३
© सर्वाध सुरक्षित
बलबीर राणा “अडिग” 

2 टिप्‍पणियां:

Neeraj Neer ने कहा…

बलबीर भाई जी ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया अवश्य पधारें पधारें .

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

कविता अच्छी है बस अभस्त को अभ्यस्त करलें ।