शनिवार, 9 मार्च 2024

होनहार की औनार


जब भी बेटा छुट्टी में घर आता है, 

कुछ घर और कुछ वो बदल जाता है

उसको मैं कमजोर और बुढ्ढा दिखता हूँ,

मुझे वो पहले से समझदार नजर आता है 


उसकी माँ इसलिए भोली हो जाती सायद 

अब वो माँ के पास होने खाने की लगाता है

माँ समझ गई कि बेटे ने टहनी पकड़ ली

और वो खुद को चोटी तक समर्थ पाता है।


नहीं रहती हमें अब उससे कोई  शिकायत

वो हमारी कचर-पचर से बोर नहीं होता है

कभी सुना भी देते हम कुछ गुस्से में तो

वो हाँ से हाँ मिलाता या मंद मुस्करा देता है।


चेहरे पर झुर्रियाँ हमारी बढ़ रही हैं,

और कंधे वो अपने झुकता देखता है

पैंसे की चिंता मत करना मैं बोलता था कभी

अब वही बात घर से निकलते वो दोहराता है।


ऊँच-नीच भली-बुरी समझाने लग गया बेटा 

सायद घर की पूरी गठरी उठाना चाहता है

समय का चक्र अपनी जगह आता है अडिग

इसलिए एक दिन बेटा भी बाप बन जाता है।


औनार -शक्ल


©® बलबीर राणा 'अडिग' 

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