सति प्रथा कुरीति थी मैं मानता हूँ
घूँघट प्रथा बूरी थी मैं समझता हूँ
छोड़ दिया हमने जो गलत था, और
छोड़ने की मज़बूरियों को भी पहचानता हूँ।
पर! हलाला कैसे सही था नहीं बतलाया
तीन तलाक क्यों ठीक था नहीं सुनाया
बुर्खा हिबाज सब जायज थे एक पंथ के
बहु विवाह कैसे तर्क संगत था नहीं समझाया।
कुछ नहीं था, गढ़ा था नरेटिव हमें भरमाने को
सनातन को भारत भूमी से सदा मिटाने को
कुछ सफल भी हुए हैं ये सनातन विरोधी
हमारी पीढ़ी को अपनी जड़ों से काटने को।
कुर्सीयों पर सनातन विरोधी अज्ञानी थे
अंदर से अंग्रेज बाहर से हिंदुस्तानी थे
कोई कॉन्वेंट के नाम, मन को हरते रहे
कुछ मदरसों में हिन्दू नाम का जहर भरते रहे।
इन्हीं के बीच थे कुछ तथाकथित उदारवादी
परोसा था गलत इतिहास बने थे खादीवादी
गंगा जमुनी तहजीव का झुनझुना पकड़ाकर
इस्लाम की गोदी बैठ, थे स्वजनित समाज़वादी।
आततायियों को ये आसमान से महान बनाते रहे
सड़क गली चौबारे इनके नाम के सजाते रहे
लूटा था जिन्होंने, या लूट रहे थे जो भारत को
उन नाराधमों का महिमामंडन करके पुजाते रहे।
पर! जड़ सत्य है सूरज जग से कभी हटेगा नहीं
स्थितिजन्य छंटेगा लेकिन मिटेगा नहीं
इसी तरह अपौरुषीय सनातन भी है मित्रो
धरा में जीवन, जीवन में धरा तक मिटेगा नहीं।
अडिग आह्वान है मित्रो वही देश गुलाम होता है
जिनको न राष्ट्र धर्म संस्कृति पर गुमान होता है
फिर गुलाम रहती उसकी साखें क्या जड़ें तक
और भविष्य उसका औरों की अपसंस्कृति ढोता है।
आसुरी शक्तियों को फिर न उठने देना होगा
सर्वदा सनातन भारत को आगे बढ़ाना होगा
विराज गए हैं राम हमारे फिर अपने आसन
सर्वे भवन्तुः सुखिनाः भगवे को सदा लहराना होगा।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
मटई बैरासकुण्ड, चमोली
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