घुम्मकड़ के साथ चल सको तो चलो,
समय की साधुगिरी निभा सको तो चलो।
समय की साधुगिरी निभा सको तो चलो।
जुबानों के कांटे-कंकड़ कहाँ चुप रहने वाले
इनकी चुभती कटारी सह सको तो चलो।
भीड़ इतनी कि पाँव खिसकेगा नहीं इंच भी,
सेंटीमीटरों में इंतजार कर सको तो चलो।
ज़माने की तेज रफ़्तार, ऊँची उड़ान के बीच,
उकाळ-उंदार पर पैदल चल सको तो चलो।
अपने वास्ते कोई क्यों बदलने चला वेवजह,
जरुरत की जोरू को बदल सको तो चलो।
पहले अपनी वाणी, नहीं तो लाटे की सही
अडिग इशारों की भाषा समझ सको तो चलो।
उकाळ-उंदार - चढ़ाई उतराई
लाटा - गूंगा
8 Nov 2025
@ बलबीर राणा 'अडिग'

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