घुमक्कड़ी की कड़ी में आज रवांईं घाटी के पुरोला से उत्तर रामासिराईं क्षेत्र में स्थिति प्रसिद्ध शिवालय कमलेश्वर महादेव की यात्रा।
कमलेश्वर महादेव परम फलदाई के रूप में लोक आस्था में विराजमान है, भगवान आशुतोष हैं ही भक्त वत्सल, श्रद्धा से जो मांगे मनोकामना पूर्ण करते हैं, और विशेषकर पुत्र प्राप्ति, नि:संतान दम्पति कभी कमलेश्वर महादेव से निराश नहीं लौटते इसलिए लोक आस्था व विश्वास अपने आराध्य से हमेशा पूर्ण आशान्वित रहता है।
कमलेश्वर महादेव के बारे में लोक मान्यता व किदवंती है कि लंका चढ़ाई से पहले भगवान राम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग स्थापना हेतु लिंग लेने के लिए हनुमान जी को हिमालय भेजा, और जब हनुमान जी लिंग लेकर निकल रहे थे तो इस स्थान पर उन्हें एक कमल दिखा अपने चंचल स्वभाव से हनुमान जी ने कमल लेने के लिए लिंग नीचे रखा, लेकिन लिंग जमीन में रखने से यहीं पर जड़ स्थापित हो गया, इस कारण इस शिवालय का नाम कमलेश्वर पड़ा। कालातीत यह लिंग यहाँ पर जंगली वनस्पति से ढक गई थी, किदवंतियाँ आगे बताती हैं कि पुराने समय में गाँव के किसी व्यक्ति की गाय इस जंगल में आकर शिवलिंग को दूध चढ़ाती थी, एक दिन गाय वाला गाय के पीछे इस जगह पर आया तो तब यहाँ पर शिवलिंग के होने का पता चला, फिर यहाँ पर नित्य पूजा अराधना होने लगी। एक अन्य किदवंती के अनुसार इस शिवालय में बहुत पहले एक कमल नाम के साधु ने साधना की उनके नाम से शिवालय का नाम कमलेश्वर महादेव पड़ा। खैर नाम जैसे भी पड़े अपने अराध्य पर अटूट लोक विश्वास श्रेष्ठ होता है ।
निर्माण शैली व वास्तुकला के मध्यनजर देखें तो जैसा कि उत्तराखंड के महत्वपूर्ण मंदिर कत्यूरी काल के बने माने जाते, वैसा इस मंदिर में नहीं दिखाई देता, निर्माण आधुनिक ही है, मंदिर गुंदियाटगाँव से 2-2.5 किलोमीटर ऊपर चीड़ के जंगलों के बीच प्राकृतिक सुरम्य स्थान पर स्थिति है। मंदिर गर्भ गृह में सुन्दर व बड़ा शिवलिंग मैजूद है, मंदिर के वाह्य में परिक्रमा पथ और पूर्व पश्चिम में दो द्वार हैं । मंदिर प्रांगण में सुन्दर मोटा जल स्रोत है और साथ में छोटा कुण्ड भी, अन्य निर्माण में साधु व पुजारी की कुटियां व आश्रय मंदिर सिमिति द्वारा बनाये गए हैं, मंदिर की पूजा क्षेत्र के बिजल्वाण पंडितों के द्वारा की जाती है जिनकी क्रमानुसार बारी लगी होती है। मंदिर के आसपास स्थानीय लोगों की छानियां हैं जहाँ बारामास पशु चारण रहता है।
कमलेश्वर महादेव से निकलने वाले जल स्रोत के साथ निकट पहाड़ियों से निकलने वाली अन्य छोटी सदानीराओं से मिलकर रामासिराईं से बहने वाली नदी का नाम कमलेश्वर महादेव के नाम से कमल नदी पड़ा जो कि पूरी घाटी की खेती के लिए लाइफ लाइन है और यह नदी नौगाँव में यमुना से मिलती है।
सिंचाई युक्त सुन्दर समतल खेती व बागवानी से भरपूर यह घाटी #पुरोला से नीचे #कमल_सिराईं और पुरोला से ऊपर #रामासिराईं नाम से जाना जाता है। रवाईं के सिराईं/सरैं का अर्थ ग़ढ़वाली #सैरे/सैरों से है। रामासिराईं नाम पड़ना भी लोक मान्यता के अनुसार राम का गाँव से है, कि यहाँ भगवान राम आये थे, रामा नाम का बड़ा गाँव अपने नाम से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
रामासिराईं क्षेत्र के मुख्य गाँवों में स्यालुका, डोखरियाणी, रेवड़ी, कंडिया, गुंदियाटगाँव, रौन, रामा, बेस्टी, ढौंकरा डिक्याल, नागझाला, कंडियालगाँव, महर गाँव, इत्यादि 20-25 छोटे बड़े गाँव आते हैं। गर्व की बात है कि लब्ध प्रसिद्ध साहित्यकार बड़े भैजी Mahabeer Ranwalta जी इसी धरती के महर गाँव से हैं, वैसे भैजी का मूल जन्म स्थान सरनौल गाँव, ठकराल पट्टी है, रवांईं रत्न महावीर रवांल्टा जी ने राष्ट्र भाषा हिंदी सृजन के साथ अपनी मातृभाषा रवांल्टी को नईं पहचान दिलायी, इसी प्रेरणा से प्रेरित वर्तमान में क्षेत्र के कई नव साहित्यकार अपनी मातृभाषा रवांल्टी में सृजनरत हैं।
@ बलबीर राणा 'अडिग'

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें