शुक्रवार, 21 मार्च 2025

अडिग दोहावली : मातृभूमि वैरासकुण्ड भूमि



पंचजूनी पर्वत तले, बसा रमणीय गांव।।
मटई ग्वाड़ छाती है, मोलागाड़ा पाँव।।1।। 

दोणा भुम्याळ रक्षक है, माँ भगवती कृपाण।। 
हितमोली हीत देवा, सैणि सार है प्राण ।।2।।

दायीं भुजा महादेव, शिव शंकर भगवान
दिव्या धाम वैरासकुण्ड, जगत विख्यात नाम ।।3।।

तपोस्थली है दशानन, ऋषि वशिष्ठेस्वर नाम।।
जगत का सबसे वृहद, हवन कुण्ड विद्यमान।।4।।

इस देवांगन आंगन में, सुन्दर शोभित ग्राम।।
खलतरा मोठा चाका, वैरूं सेमा आम ।।5।। 

जन्में इस दिव्य भूमि ने, पूत सपूत तमाम ।।
तेरे लिए नहीं अडिग, कहीं पवित्र जग जान ।।6।।

जन्म थाती त्वै सत-सत प्रणाम

@ बलबीर राणा 'अडिग'

सुनो नेताजी

नेता जी गर प्रेम बरसाए हो तो, 

फिर काहे को गरबगलाए हो ।
जिन पहाड़ियों ने ताज़ पहनाया,
उन्हीं को क्यों गरियाए हो !

क्या बोले थे ये धरती किसकी ?
तुम साले पहाड़ियों की बिसात है?
तो सुनो नेता जी कान खोलकर!
ये हमारी बबोती, नहीं तुम्हें सौगात है।

सेवक हूँ हाथ जोड़ चुनाव लड़े हो, 
पहाड़ की मिट्टी पर करोड़ों में खड़े हो।
पहाड़ी की बिल्ली पहाड़ को ही म्याऊँ, 
सत्ता के नशे में जो तुम इतना तड़े हो?
सच्ची के पहाड़ी हो तो सुनो दगड़यौ,
गंगा यमुना के हो तो बिंगों दगड़यौ।

इन गालीबाजों को अब सबक सिखाना है,
बणियां-सणियों को अब नहीं बसाना है। 

भूमी हमारी भुमियाळ हमारा,
फिर क्यों नहीं भू क़ानून हमारा?
मूल निवासी हो जाएंगे प्रवासी,
गैर क्यों बनेगा मालिक हमारा?


@ बलबीर राणा 'अडिग'

5 मार्च 25

प्रेमचंद्र अग्रवाल मंत्री उत्तराखंड के पहाड़ियों को गाली देने पर 

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

AI का बढ़ता प्रभाव : प्राकृतिक बुद्धिमत्ता अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता की गिरफ्त में





      कोई चीज किस हद तक ? आम तौर पर देखा गया है कि जीवन के हर पक्ष को एक हद में बाँध दिया जाता है, लेकिन जब कोई चीज हद लांघती है तो उसे या तो अद्भुत कहा जाता या अन्योचित। हद से उपर की चीजें विशिष्ट भी होती हैं तो विनिष्ट भी। परिवर्तन इस चराचार जगत की प्रवृति है जो मानव समाज व सभ्यताओं के साथ उनके जीवन स्तर को परिवर्तित करता आया है। परिवर्तन वेगवान व कभी ना रुकने वाली वह धारा है जिसमें बहने से तत्कालिक मानव सभ्यता खुद को नहीं बचा सकती है।

      आज वैज्ञानिक तकनीकी ने इस युग के परिवर्तन को तेज नहीं अत्यधिक तेज गति दी है, इस सुपर सौनिक रफ़्तार ने धरती के साथ पूरे सौरमण्डल को अपनी गिरफ्त में कर लिया कहना गलत नहीं होगा। जीवन के हर क्षेत्र के कार्य सुलभ से भी अति सुलभ होते जा रहे हैं और यह सुलभता की गति कहाँ रुकेगी कह नहीं सकते, तकनीकी आविष्कार नित नएं आयाम व प्रतिमानो को प्रतिस्थापित कर रहा है। पुनारावृति नहीं नित नवाचार, इस नवाचार में कम्प्यूटर साइन्स ने जो एक अति लम्बी छलांग लगायी है वह वास्तव में हद के बाहर की बात है, इसे कम्प्यूटर साइन्स का अभी तक का सबसे उन्नत व अद्भुत आविष्कार कहा जा सकता है और यह उन्नति है एआई, याने आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स, जो जीवन के सारे मिथकों को तोड़ता नजर आ रहा है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्राकृतिक मानव बुद्धिमत्ता अब पूरी तरह से इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता की गिरफ्त में आती नजर आ रही है । 

      वसरते आज एआई से परिचय नयां नहीं हैं फिर भी संक्षिप्त रूप से परिचय इस प्रकार है कि एआई यानि आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स के जरिए मशीनों को मानव जैसे सोचने, समझने एवं निर्णय लेने में क्षमतावान बनाया जाता है। यह मशीनों को डेटा विश्लेषण करने, समस्याओं को हल करने, और सीखने में सक्षम बनाता है। इसका उद्देश्य ऐसे सिस्टम को विकसित करना है जो स्वचालित और स्मार्ट तरीके से कार्य कर सके । अर्थात एआई कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जिसके तहत इंसानों की तरह सोचने, समझने, निर्णय लेने व कार्य करने के लिए सिस्टम यानि मशीनें को तैयार किया जाता है। आज एआई से न केवल जीवन आसान बन रहा है बल्कि समाज, व्यवसाय, और तकनीकी क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है। एआई तकनीकी का काम करने के मूल सिद्धांत निम्नवत है:-

पहला -  डेटा संग्रहण और प्रसंस्करण (Data Collection and Processing) - सिस्टम को काम करने के लिए बहुत सारा डेटा चाहिए होता है। यह डेटा विभिन्न स्रोतों से लिया जाता है, जैसे कि सेंसर, इंटरनेट, डाटाबेस, या यूजर इंटरैक्शन। इसमें डेटा को साफ, संरचित और उपयोगी रूप में व्यवस्थित किया जाता है फिर इसे प्रोसेस करने के लिए एआई मॉडल तैयार किए जाता है।

दूसरा - मशीन लर्निंग (Machine Learning) - एआई सिस्टम का मुख्य भाग मशीन लर्निंग है, जिसमें एल्गोरिदम और मॉडल्स को ट्रेन किया जाता है जिसमें सुपरवाइज्ड लर्निंग, अनसुपरवाइज्ड लर्निंग और रीइन्फोर्समेंट लर्निंग शामिल होता है।

तीसरा - डीप लर्निंग (Deep Learning) - यह मशीन लर्निंग की ही उन्नत शाखा है, जो न्यूरल नेटवर्क (Neural Network) का उपयोग करती है। न्यूरल नेटवर्क इंसानी मस्तिष्क के न्यूरॉन्स की तरह काम करता है। यह जटिल डेटा को समझने और पैटर्न पहचानने में सक्षम है, जैसे इमेज, आवाज व टेक्स्ट इत्यादी।

चौथा - एल्गोरिदम (Algorithms) - एल्गोरिथम यानि किसी समस्या को हल करने या गणना करने के लिए निर्देशों का वह समूह जो एक खास प्रक्रिया के ज़रिए किसी कार्य को करने या समस्या को हल करने के लिए चरण-दर-चरण डिजाइन किया जाता है जिसका इस्तेमाल कंप्यूटर विज्ञान, गणित, और डेटा प्रोसेसिंग में किया जाता है जैसे निर्णय लेने के लिए Decision Trees व के-मीन्स (K-Means) अर्थात यह डाटा को विभिन्न समूहों में विभाजित कर सुव्यवस्थित करता है।

पाँचवा - भाषा और संवाद NLP  (Natural Language Processing) - नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग याने प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण की मदद से एआई मानव भाषाओं को समझकर उपयोग कर सकता है। NLP कंप्यूटर विज्ञान व कृत्रिम बुद्धिमत्ता का वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक भाषा व कंप्यूटर के बीच बातचीत का संबंध स्थापित करता है।

छटवां - कंप्यूटर विजन (Computer Vision) -  एआई छवियों एवं वीडियो का विश्लेषण करके उन्हें पहचान सकता है। इसका उपयोग चेहरे को पहचानने, ऑब्जेक्ट डिटेक्शन आदि में होता है।

सातवां - डिसीजन मेकिंग और ऑटोमेशन (Decision Making and Automation) - एआई सिस्टम संग्रहीत डेटा और प्रोग्रामिंग के आधार पर त्वरित और सही निर्णय लेता है। जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कार, रोबोटिक्स इत्यादी।

आठवां - मॉड्यूल फीडबैक (Feedback Loops) - एआई सिस्टम अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए फीडबैक का उपयोग करता है। यह नई जानकारी से खुद को अपडेट और बेहतर बनाता है। जैसे हेल्थकेयर (डायग्नोसिस और इलाज), ई-कॉमर्स व अन्य संस्थाओं के लिए सिफारिश प्रणाली, एग्रीकल्चर में सही एवं सटीक खेती करना, फाइनेंस क्षेत्र में जोखिमो का प्रबंधन, शिक्षा में व्यक्तिगत लर्निंग इत्यादी।

      जैसे-जैसे अधिक से अधिक व बुद्धिमान प्रणालियाँ निर्मित होती जा रही हैं, विचार करने के लिए एक स्वाभाविक प्रश्न उठ रहा है कि ऐसी प्रणालियाँ एक-दूसरे के साथ कैसे समन्वय स्थापित करेंगी। मल्टी-एजेंट सिस्टम ने इस पर प्रभावी काम किया है जिससे ऑनलाइन मार्केटप्लेस, परिवहन प्रणालियों व अन्य क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन आया है। अपने शुरुआती दिनों से ही एआई ने उन प्रणालियों के डिजाइन और निर्माण का काम संभाला जो वास्तविक दुनिया में सन्निहित थे। आज रोबोटिक्स का क्षेत्र संवेदना व अभिनय की मूल बातों को अजाम दे रहा है, यह प्रभावी ढंग से व्यवहार करने में सक्षम बन गया है, रोबोट न्यूज एंकर, वेटर या कर्मचारियों से सभी परिचित हैं। कहना गलत नहीं होगा कि आज रोबोट मनुष्यों का अब्बल व अच्छा साझेदार बनता जा रहा है।

एआई का विकास और इतिहास - जॉन मैकार्थी को आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स का जनक माना जाता है जो कि  अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक थे, इनके साथ एलन ट्यूरिन, मार्विन मिनस्की, एलन न्यूवेल एवं हरेन ए साइमन एआई के पहले संस्थापकों में से थे। ज्यादा गहराई में ना जाते हुए संक्षेप में कि एआई का प्रारंभिक दौर 1950 से 1970 था जिसमें एलन ट्यूरिंग ने ‘ट्यूरिंग टेस्ट’ के माध्यम से यह जांचने का सुझाव दिया कि मशीनें इंसानों की तरह सोच सकती हैं या नहीं। पहली एआई प्रोग्रामिंग भाषा हौंठो के रूप में विकसित हुई। 1970 से 199 के समय को एआई का मध्यकाल कहा जाता है जिसमें एआई हेतु विशेषज्ञ प्रणाली (Expert Systems) का विकास हुआ, जो विशेष कार्यों में इंसानों से भी बेहतर निर्णय ले सकती थी। तब से एआई को व्यावसायिक रूप से उपयोग में लाने के प्रयास शुरू हुए। 1990 से वर्तमान तक के समय को आधुनिक काल कहा जाता है जिसमें मशीन लर्निंग, बिग डेटा और डीप लर्निंग ने एआई को अधिक प्रभावी और उपयोगी बनाया। स्वचालित वाहन, वर्चुअल असिस्टेंट, एलेक्सा, सिरी, और चौटबॉट्स जैसे उन्न्त तकनीकियों का विकास हुआ।

      एआई के वर्गीकरण की बात की जाय तो इसमें पहला नैरो एआई (Narrow AI) जो विशेष कार्य या समस्या का हल करने के लिए डज़ाइन किया गया है जिसमें वॉयस असिस्टेंट, सर्च इंजन, यूट्यूब या नेटफ्लिक्स जैसे पोर्टलों के लिए सिफारिस प्रणाली शामिल है। दूसरा जनरल एआई इसे इंसानों की तरह सोचने व निर्णय लेने के लिए सक्षम बनाया गया है और तीसरा सुपर एआई जिसमें ऐसी मशीनों का निर्माण शामिल है जो इंसानी बुद्धिमत्ता को पीछे छोड़ दे पर यह अभी भविष्य की कल्पना है। इन्हीं वर्गीकरण के आधार पर एआई सिस्टमस की कार्यप्रणलियों को रीएक्टिव मशीन, लिमिटड मेमोरी, थ्योरी ऑफ माइन्ड, एवं सेल्फ अवेयरनेस के रूप में जाना जाता है। 

      एआई के उपयोग व प्रभाव की बात की जाया तो जीवन के तमाम क्षेत्रों में एआई की कुशलता व कौशलता का प्रभाव होता जा रहा है हाँ न्याय एवं संसदीय जैसी कुछ प्रणालियां हैं जहाँ व्यक्ति को ही निर्णय लेना या देना होता है, ये अभी अछूते रखें हैं जिस दिन इन व्यक्तियों की जगह एआई सुरु हो गया तो तब यही मशीनें मानव जीवन का नीति नियंता बन बैठेंगी फिर ना किसी जज की जरूरत होगी ना नेता की। आज एआई के बढ़ते प्रभाव को मानव जीवन के लिए वरदान व अभीशाप दोनों रूप में बराबर देखा जा रहा है। यह मनुष्यों की क्षमताओं को बढ़ाने मे अतिशय मदद कर रहा है, जिसमें सही गलत दोनो क्षमताएं शामिल हैं। आज इसे जिम्मेदारी, न्याय एवं नैतिकता से उपयोग करने की बहुत आवश्यकता है, सही दिशा में इसका उपयोग जहाँ उज्जवल व समृद्ध भविष्य की ओर इंगित करता है वहीं गलत दिशा में अकल्पनीय विद्रूपता की तरफ मानव जीवन का जाना तय मना जा रहा है।

एआई का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सदुपयोग व प्रभाव

शिक्षा - एआई ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत सीखने के अनुभव को बढ़ाया जिसमें डिजिटल ट्यूटर, ऑनलाइन कोर्स एवं स्मार्ट कंटेंट की मदद से छात्र अपनी गति और आवश्यकता के अनुसार पढ़ाई कर रहे हैं। एआई आधारित शिक्षा प्लेटफॉर्म जैसे कान अकादमी, बायजूस इत्यादी छात्रों को उनकी गति और रुचि के अनुसार पढ़ने की सुविधा दे रहे हैं और आंकलन कर रहे है।

स्वास्थ्य सेवा - स्वास्थ्य सेवाओं में एआई ने बिमारियों के निदान को और सटीक व तेज बनाया है। रोबोटिक सर्जरी, रोगों की पूर्व चेतावनी एवं व्यक्तिगत चिकित्सा जैसे क्षेत्र एआई से और अधिक कुशल हुए हैं। साथ में फिटनेस ट्रैकर्स व स्वास्थ्य एप्लिकेशन जो हार्ट रेट और अन्य मेट्रिक्स को मॉनिटर करते हैं प्रभावी होते जा रहे हैं। इसके साथ वर्चुअल डॉक्टर चैटबॉट्स (वॉयस इनपुट व टेक्स्ट में बातचीत करने का माध्यम) एआई हेल्थ ऐप्स छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में कारगर हो रहे हैं।

व्यवसाय व रोजगार - एआई ने व्यवसायों को अधिक उत्पादक और कुशल बनाया है। ग्राहक सेवा में चैटबॉट्स, डेटा एनालिसिस और ऑटोमेशन ने नए अवसर पैदा किए हैं।

रचनात्मकता एवं मनोरंजन - मनोरंजन उद्योग में एआई ने सिफारिश प्रणाली (Recommendation) को अत्यधिक बल दिया है साथ ही कंटेंट निर्माण, वर्चुअल इफेक्ट्स और एनीमेशन को बेहतर बनाया है। एआई से मीडिया, गेमिंग, फिल्म, संगीत एवं वीडियो गेम्स अधिक इंटरैक्टिव व आकर्षक बन रहे है। चैट जीपीटी जैसे प्लेटफॉम कंटेंट लेखन व अन्य रचनात्मक कामों में मदद कर रहा है।

यातायात व परिवहन - स्वचालित वाहन जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कारों ने सुरक्षित व कुशल यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया है। एआई आधारित नेविगेशन एप्लिकेशन गूगल मैप जैसे प्लेटफार्म ट्रैफिक की सही जानकारी के साथ सही व तेज़ रास्ता सुझाते हैं। एआई सिस्टम के उपयोग से सार्वजनिक परिवहन जैसे ट्रेन, बसों और हवाई जहाजों का संचालन अधिक कुशलता से व समय पर हो रहा है।

घरेलू जीवन में सुधार - वर्चुअल असिस्टेंट में अमेज़न एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट एवं सिरी घर में छोटे-बड़े कार्यों में मदद कर रहे हैं, जैसे अलार्म सेट करना, रिमाइंडर देना या मौसम की जानकारी देना इत्यादी। स्मार्ट उपकरण में रोबोटिक वैक्यूम क्लीनर, स्मार्ट लाइट्स, और थर्मास्टैट्स तकनीकियां घरेलू कामों को सरल बना रहा है।

अनुसंधान और विज्ञान में मदद - स्पेस रिसर्च में एआई का उपयोग अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाने एवं डेटा विश्लेषण करने में हो रहा है। यह प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान, भूकंप, तूफान और बाढ़ जैसी आपदाओं की भविष्यवाणी करने में कारगर हो रहा है।

डिफेंस सेक्टर - डिफेंस सेक्टर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है यह आधुनिक युद्ध व सुरक्षा रणनीतियों में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है। एआई का इस्तेमाल न केवल युद्ध के मैदान में बल्कि साइबर सुरक्षा, खुफिया जानकारी, और स्वचालित हथियार प्रणालियों के विकास में अग्रणीय हो रहा है।

      कहना प्रसांगिक होगा कि आज मानव जीवन को सुविधाजनक, सुरक्षित और उत्पादक बनाने में एआई महति भूमिका निभा रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दुरुपयोग व प्रभाव

      जिस प्रकार उपरोक्त कहा गया है कि एआई का सही दिशा में उपयोग जहाँ उज्जवल व समृद्ध भविष्य की राह प्रसस्त कर रहा है वहीं गलत दिशा में उपयोग से जीवन का अकल्पनीय विद्रुरपता की और जाना तय है। आज जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने तकनीकी प्रगति के नए द्वार खोले हैं वहीं इसका दुरुपयोग समाज, सुरक्षा और नैतिकता के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है। एआई के दुरुपयोग से निजी जानकारी की चोरी, सामाजिक असमानता व र्राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे जटिल मुद्दों को भी खतरा पैदा हो रहा है। इसके दुरुपयोग को निम्न रूपों में देखा सकता है। 

फर्जी जानकारी और दुष्प्रचार फैलाना - एआई आधारित टूल्स का उपयोग फेक न्यूज़ और डीपफेक वीडियो बनाने के लिए किया जा रहा है, जो तेजी से वायरल होते हैं जिससे कारण समाज में डर अराजकता आदि फैल रहा है। एआई से नकली खबरें, प्रचार, और झूठी जानकारी फैलाना आसान हो गया है। यह समाज में भ्रम और अस्थिरता पैदा कर रहा है। आज यह तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि लोगों को सच और झूठ के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।

सामाजिक और राजनीतिक दुष्प्रचार ¼Propaganda½ - चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है। फर्जी राजनीतिक प्रचार और अभियानों के लिए एआई आधारित कंटेंट का उपयोग टार्गेटिंग के साथ भावनात्मक अपील के लिए नकली विज्ञापन बन रहे हैं। उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह के अंबेडकर बयान पर आम आदमी पाटीं ने अंबेडकर द्वारा अमित शाह को थप्पड़ मारना दिखाया। ऐसे ही कई प्लेटफॉर्म धार्मिक या राजनीतिक कट्टरता वाले कंटेंट को बना रहे हैं क्योंकि एआई जनित कंटेंट का आकर्षक होने से अधिक व्यूअरशिप मिलती है।

सोशल मीडिया बॉट्स और ट्रोलिंग - एआई बॉट्स सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर गलत सूचनाएं फैलाने में मदद करते हैं। ये बॉट्स राजनीतिक या सामाजिक मुद्दों पर नकारात्मक बहस और विभाजन उत्पन्न करते हैं। किसी खास नैरेटिव को बढ़ावा देने के लिए झूठे डेटा या जानकारी को वायरल किया जाता है। साथ ही विडियो एडिट सॉफ्टवेयर एवं सोशियल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर उन्नत एआईकृत वीडियो एडिटर से आकर्षक वीडियो बन रहे हैं जिससे रील्स नशेड़ियों ने नंगेपन व बेवड़ेपन से सोशियल मीडिया पर भसड़ मचाई हुई है जिसके चलते आम कुलीन वर्ग के बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं, जो कि एक सभ्य मनुष्य व समाज की उन्नति नहीं अवनति का कारक बनता जा रहा है  

डीपफेक तकनीक - इस तकनीकी से नकली वीडियो और ऑडियो बनाए जा रहे हैं, जो वास्तविक व्यक्ति की तरह दिखते हैं। इसका दुरुपयोग राजनेताओं, विशेष हस्तियों व आम लोगों को बदनाम करने या धोखा देने के लिए किया जा रहा है।

साइबर अपराधों में वृद्धि - एआई का उपयोग फिशिंग ईमेल व मैलवेयर को अधिक कुशल बनाने के लिए किया जा रहा है। हैकिंग के लिए किसी सिस्टम्स को ब्रेक करना आसान हो गया है जिसमें सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं का काम बाधित होना या नष्ट किया जाना शामिल है।  

गोपनियता व निजता का हनन - एआई आधारित निगरानी प्रणालियां लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखती हैं, जिससे उनकी निजता को खतरा हो रहा है। बड़ी कंपनियां द्वारा एआई का इस्तेमाल करके उपयोगकर्ताओं का डेटा अनैतिक रूप से इकट्ठा करके बेचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

आतंकी गतिविधियों में उपयोग - एआई जनित ड्रोन व अन्य स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल आतंकी समूहों द्वारा किया जा रहा है, इससे आतंकी समूहों को अधिक शक्तिशाली उपकरण मिल रहे हैं।

नकली सामग्री बनाने में - एआई का दुरुपयोग साहित्य, संगीत, और कला के क्षेत्र में नकली रचनाएं बनाने के लिए किया जा रहा है, जिससे असली रचनात्मकता व कला का हनन हो रहा है।

बेरोजगारी व नौकरियों पर प्रभाव - एआई आधारित ऑटोमेशन से श्रमिक नौकरी से वंचित हो रहे हैं जिससे आर्थिक असमानता बढ़ने की संभावना है।

युद्ध - स्वचालित हथियार और रोबोटिक सिस्टम्स एआई द्वारा संचालित होकर युद्ध के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।

नकली समीक्षाएं और रेटिंग्स (Fake Reviews and Ratings)- ई-कॉमर्स वेबसाइट्स से उत्पादों की नकली सकारात्मक समीक्षाओं से उपभोक्ताओं को लुभाने का काम हो रहा है।

      अगर संक्षिप्त में एआई प्रभाव की बात की जाए तो एआई जहाँ मानव जीवन के लिए वरदान साबित हो रहा है वहीं इसका अभिशाप होना उतना ही प्रासांगिक है। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए न्याय सम्मत नियमों व कानूनों की सख्त आवश्यकता है। ताकि विकास की परिपाटी को विनाशीय बनने से रोका जा सके।

      अब सवाल ये भी उठता है कि हमारे देश का आम जन मानस इसकी उपयोगिता को कैसे समझे ? तो यहाँ पर कहना प्रसांगिक होगा कि मैं नहीं जानता, मुझे नहीं पता या मेरा तो क्या वाले नजरिये से स्वयं, समाज व राष्ट्र हित नहीं होने वाला। नहीं जानने या समझने वाली मानसिकता से समाज में एक बड़ी खाई पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। नही तो फायदा लेने वाला सही गलत सब फायदा लेगा वा मूक बना मनुष्य या वर्ग प्रताड़ित होता रहेगा। परिवर्तन का सिद्धान्त ही खुद को अपडेट करना कहता है। दूसरी बिडम्बना ये भी है कि आज हमारे देश में ये सभी आधुनिक तकनीकियां औपनिवेशिक भाषा यानी अंग्रेजी में ही ज्यादा सुलभ हैं तो आम जन को अपनी मातृ व राष्ट्रभाषा के साथ अंग्रेजी को अच्छी तरह जानना, समझना व सीखना होगा। हाँ इसी एआई का प्रभाव है कि गूगल ट्रांसलेट जैसे प्लेटफॉर्मों की वजह से सब जानकारियां हिन्दी व राष्ट्रीयकृत भाषाओं में भी उपलब्ध हो चुकी हैं बस व्यक्ति को जिज्ञासु रहने व होने की जरूरत है। अंत में यही कहना चाहूँगा कि परिवर्तन के साथ चलते हुए ही राष्ट्रहित सर्वोपरि रखा जा सकता है नही तो अपरिवर्तित रहने से निज भविष्य में खुद की पहचान व वर्चस्व रखना संभव नहीं है।             

  ©® सर्वाधिकार सुरक्षित
@ बलबीर राणा अडिग 

 

मंगलवार, 21 जनवरी 2025

बलबीर राणा अडिग की कहानी संग्रह का लोकार्पण









 देहरादूनरू रायपुर सौड़ा सरोली अटल उत्कृष्ट राजकीय इन्टर कॉलेज में दिनांक 12 जनवरी को भव्य साहित्यिक अयोजन हुआ। कार्यक्रम दो सत्रों में अयोजित किया गया। पहले सत्र में गढ़रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी की अध्यक्षता में सुबेदार बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’ की गढ़वाली कहानी संग्रह ‘बिदै अर हौरि कहानि’ का लोकार्पण हुआ। सत्र का संचालन गढ़ साहित्य अलंकरण श्री गिरीश सुन्दरियाल जी द्वारा किया गया। सत्र में बलबीर राणा अडिग के लेखकीय उद्बोधन के बाद साहित्य विद व विदुषी श्रीमती बीना बेंजवाल द्वारा कथा संग्रह ‘विदै अर हौरि कहानि’ पर समक्षीय व्याख्यान एवं कर्नल (सेवानिवृत) मदन मोहन कण्डवाल द्वारा कथाकार के साहित्य, सैन्य जीवन व भारतीय सेना एवं विश्व सैन्य साहित्य पर विस्तृत ज्ञानोर्पाजन व्याख्यान दिया। सत्र के अन्त में श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन आम जनता को सावधान किया जो अपने बच्चों को गढ़वाली साहित्य नहीं पढ़ा रहे हैं साथ में उन्होने कहा कि केवल साहित्य पर निर्भर नहीं सभी को अपनी गढ़वाली भाषा के लिए सचेत और संवेदशील होना पड़ेगा। 

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में विराट गढ़वाली कवि सम्मेलन हुआ जिसका संचानल वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार व कुशल मंच संचालक श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ जी के द्वारा किया गया। जिसमें श्री गिरीश सुन्दरियाल, श्री धर्मेन्द्र नेगी, श्रीमती प्रेमलता सजवाण, श्री बलबीर राणा ‘अडिग’, श्री ओम बधानी, श्री हरीष जुयाल कुटज, श्री ओम प्रकाश सेमवाल, श्रीमती बीना बेंजवाल, श्री मदन डुकलाण, श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ और गढरत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा कविताओं का पाठ किया गया। सभी कवियों ने अपनी अपनी विष्शिट काव्य शैली से जनता को बांधे रखा। कवि सम्मेलन मे जहाँ श्री गिरीश सुन्दरियाल ने प्रेम गीत से जनता को मुग्द किया वहीं धरर्मेन्द्र नेगी ने व्यंग गजल से अपने चिर परचित अंदाज में वाह वाही लूटी, प्रेम लता ने फौजी भाई को सेवानिवृति के बाद नईं सामाजिक जिम्मेवारी, बलबीर राणा ने अपने सैन्य अंदाज में वीर रस की कविता, श्री ओम बधानी ने सैन्य परिवार गीत तो हरीष जुयाल कुटज ने अपने हास्य व्यंग ‘मास्टरों कि तन्खा’ से लोगों को खूब हँसाया, श्री ओम प्रकाश सेमवाल ने पिस्यूं आटू कबतक पीसलौ सामयिकी गीत, श्रीमती बीना बेंजवाल ने उत्तराखण्ड मातृशक्ति जीवन संघर्ष, श्री मदन डुकलाण जी ने ‘हथ भर कटेगे अब बेथ भर रयूं चा’ गजल व कविता से सबको रिझाया। श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ जी ने सैनिक के बॉर्डर और सैनिक पत्नी के घर के बॉर्डर पर संघर्ष का सुन्दर कवित्व पाठ किया। अन्त में श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने बढ़ती उम्र के प्रभाव व प्रेम कविता के साथ अपने गीत से दर्शकों को मुग्द किया। यह क्षेत्र में पहला आयोजन था जब एक सैनिक ने अपनी सेवानिवृति पर साहित्यिक संगोष्ठी करायी। 

आयोजन में भारी मात्रा में साहित्यिक व सैन्य परम्परा क्षेत्र के साथ ग्राम सौड़ा के रैबासी व अडिग जी के कुटुम्ब जन मैजूद थे। मुख्यतया साहित्यिक वर्ग से भाषाविद रामाकान्त बेंजवाल जी, रंगकर्मी श्री कुलानन्द घनशाला, श्री जगदम्बा चमोला, डा. ईशान पुरोहित, श्री गिरीश बडौनी, श्री अनिल नेगी, श्री नन्दन राणा नवल, श्री आशीष सुन्दरियाल, दिल्ली से श्री जबर सिंह कैन्तुरा, श्री जगमोहन सिंह जगमोरा, श्रीमती भगवती सुन्दरियाल, श्री रमेश बडौला, श्री अरविन्द प्रकृति प्रेमी, श्री इन्द्रेश प्रसाद पुरोहित आदि सैन्य वर्ग से कैप्टेन उमा दत्त जोशी, कैप्टेन तित्रोक सिंह रावत, कैप्टेन कुंवर सिंह’ वीर चक्रा, कैप्टेन महादेव प्रसाद, कैप्टेन गबर सिंह नेगी, कैप्टेन सत्यपाल सिंह राणा, 14 गढ़वाल से सुबेदार कविन्द्र थपलियाल आदि थे, साथ ही अयोजन में श्री अनिल कठैत, सुनिल कठैत, श्री दलीप फर्स्वाण, श्री कलम सिंह राणा, श्री इन्द्र सिंह बिष्ट, विद्यालय प्रथानाचार्य श्री राम बाबू विनय आदि गणमान्य लोगों की गरिमामयी मैजूदगी रही।

मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

कभी नहीं छूटता चलने को




कभी नहीं छूटता चलने को,
संघर्ष जीवन से निकलने को।

सुरज इस लिए रोज डूबता है,
फिर एक नईं सुबह उगने को।

वक्त चलायमान रुकता कहाँ, 
वक्त होता ही है गुजरने को।

लगे रह हैरान परेशान न हो,
तू आया ही है कुछ करने को।

संजो समय को सामर्थ्य से,
सामर्थ्य होता ही संवरने को।

कर्म का नाम ही जीवन अडिग,
कर्म बिन जीवन न निखरने को। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'

गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

नीव के पत्थरों को कंगूरे पर विराजमान करने का श्रमसाध्य है ‘शेष स्मृति शेष’

 


देशकाल व समय के साथ हमें परिस्थितीजन्य स्थिति ग्रहण करनी पड़ती है और इन्हीं परिस्थितियों से उत्पन होता हमारा लोक व्यवहार व लोकाचार, साथ में परिस्थितियों की जननी जीवोपार्जन की स्थितियां भी लोक व्यवहार व लोकाचार गढ़ने में अहम भूमिका अदा करती हैं। कहते हैं जीवन में कुछ अतरिक्त करने के लिए अनुकूल संसाधनों या मद पारितोषिक का होना अनिवार्य माना जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कैसी भी परिस्थितियों में कुछ विशेष करके विशिष्ट बन जाते हैं और आम से खास की श्रेणी में आ जाते हैं। खास लोगों के पास कुछ विशेष प्रतिभा एवं क्षमताएँ तो होती ही हैं, इसके साथ उनके पास होती है वेहतर संप्रेषण कौशलता, यथोचित तर्क, आत्म-चेतना, चिन्तन, सदाचार एवं सम्मान की प्रबल भावना। ऐसे ही अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में विशेष करने वाले विशिष्ट व्यक्तित्वों को आम समाज से रू-व-रू कराने वाली  पुस्तक है शेष स्मृति विशेष

          दिवंगत विभूति प्रसंग निबन्धात्मक आलेख संग्रह के लेखक हैं श्री नरेन्द्र कठैत जी। उपरोक्त विशेषता व विशिष्टता हेतु शूक्ष्म भूमिकीय शब्दों की भावांजली पुस्तक के लेखक के लिए भी प्रेषित करता हूँ कि जिन विशिष्ट व्यक्तित्वों को आपने उकेरा है जो हमारे समाजिक भवन की नीव की ईंट रूप में अविचल हैं उन्हें कंगूरे पर स्थापित करके आम समाज को दृश्टव्य बनाने का जो श्रम आपने किया वह वंदनीय ही नहीं अपितु स्तुत्य है। ऐसे ही स्तुत्य कार्य की पहचान आपकी विशेष जन विशेषएवं ये ! ज्ञान के कठैत पुस्तकें भी हैं। पुस्तक पर आऊं कि इससे पहले मैं स्वनामधन्य श्री नरेन्द्र कठैत जी के साहित्य जीवन से परिचय कराना चाहूँगा।

          वैसे तो श्री नरेन्द्र कठैत भैजी किसी नाम के मोहताज नही हैं फिर भी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आप उस परम्परा के साधक हैं जिन्होने अपनी बहुविध रचनाक्रम में देवभूमि उत्तराखण्ड के कण-कण व समाजिक जीवन के क्षण-क्षण को छुआ है। आपने अपनी चिर परिचित व्यंग व विवेचनात्मक शैली में साहित्य की सभी विधाओं में सृजन किया। वैसे तो कठैत जी बहुत लम्बी साहित्य यात्रा कर चुके हैं लेकिन आगे इस पथ पर अविराम गतिमान हैं सट्म-सूट। आपकी इस यात्रा की उपलब्धियों में अभी तक गढ़वाली व हिन्दी में तेईस से उपर पुस्तकों का सृजन हो चुका है। जिसमें - निबंधात्मक आलेख संग्रहों में ये ! ज्ञान के कठैत’, ‘विशेष जन विशेषशेष स्मृति शेष। कविता संग्रह में टुप-टप्प, तबारि अबारि। खण्ड काव्यों में पाणि, डाळै विपदा। नाटकों में डॉ आशाराम, पाँच पराणी पच्चीस छ्वीं। व्यंग संग्रहों में कुळ्ळा पिचकरी, लग्यां छां, अड़ोस पड़ोस, हरि सिघौ बग्गि फस्ट, आर-पारै लड़ै, समस्या खड़ि च, नाराज नि हुयां, बक्कि तुमारि मर्जि। जीवनी में बी. मोहन नेगी, अब यिं सब्द बि हमारा गुरुमंत्र छन। संपादन  में ख्यातिनाम चित्रकार बी. मोहन नेगी (सृजन विशेष स्मृति शेष)। अनुवादित पुस्तकों में जिन्दग्या बाटा मा (डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की हिन्दी कविताओं का गढ़वाली अनुवाद), मुंड मा आग/पीठ मा पाड़ (136 लब्धप्रतिष्ठ कवियों की प्रमुख रचनाओं का गढ़वाली अनुवाद), चन्द्रहार (हिमवंत कवि चंद्रकुवर बर्त्वाल की 160 हिन्दी कविताओं का गढ़वाली अनुवाद), इसके साथ अभी टुप-टप्प पुनः प्रकाशन और अन्य दो पुस्तकें प्रकाशाधीन हैं। इसके साथ आपकी दो पुस्तकें श्री गुरू राम राय विश्वविघालय, देहरादूनद्वारा संचालित Syllabus of Garhwali language and Culture के अन्तर्गत बी.ए. तथ एम.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। साथ में आपके समसमायिकी लेख, व्यंग, कविताएं एवं अनुवाद देश व प्रदेश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं।

          वहीं पुरस्कार/सम्मानों की बात की जाय तो श्री कठैत जी को कतिपय विशिष्ट संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है जिनमें गढ़वाली भाषा में मौलिक व उत्तकृष्ट व्यंग लेखन के लिए आदित्यराम नवानी पुरुस्कार। साहित्यांचल कोटद्वार द्वारा हिमाद्री रत्न सम्मान। उत्तराखण्ड भाषा संस्थान देहरादून द्वारा लोकभषा में उल्लेखनीय योगदान हेतु डॉ गोबिन्द चातक सम्मान। उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान’, एवं उत्तराखण्ड भाषा संस्थान देहरादून का उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान शामिल हैं। और आपकी निरंतर साधना आगे निज भविष्य में राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय फलक के पुरस्कार/सम्मानों की बाट को प्रसस्त करता है। साथ में हमारे लिए गौरव की बात है कि उत्तराखण्ड की धरती से आप मात्र ऐसे व्यंगकार है जिन्हें नेटबुक्सद्वारा प्रकाशित इक्कीसवीं सदी के श्रेष्ठ 252 अंतराष्ट्रीय व्यंगकारों में प्रतिष्ठत किया गया है।     

          यह था दिवंगत विभूति प्रसंग निबन्धात्मक आलेख संग्रह शेष स्मृति विशेषके लेखक का शूक्ष्म साहित्य पारिचय, शूक्ष्म इस लिए कह रहा हूँ कि जितनी विस्तृत उनकी कलम है उसके लिए यह नाकाफी है। और कहने में गलत नहीं होगा कि श्री कठैत जी ने अपने सृजन को जितना प्रतिष्ठ किया है अब उसे शोध द्वारा पूर्ण प्रतिष्ठा रूप मे स्थापित करना जरूरी नहीं जरूरत है। 

          वापस शेष स्मृति विशेषपर। 86 पृष्ठों में समवेत यह निबन्धात्मक आलेख संग्रह इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसका मूल्य 300 रूपये मात्र रखा गया है। पुस्तक की भूमिका उत्तराखण्ड भूमि के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ हिर सुमन बिष्टजी द्वारा लिखी गई है। पुस्तक में लेखक द्वारा 15 ऐसी दिवंगत विभूतियों के जीवनवृन्त व कृतत्व को उल्लेखित किया है जिनका साहित्य व समाज में अतुलनीय योगदान रहा, वशर्ते समाज आज उन्हें लब्धप्रतिष्ठ रख पाया या नहीं यह समाज की है परन्तु लेखक द्वारा इन विभूतियों को उनके किए का जो शिला दिया गया है वह वाकई स्तुत्य है।

          आम देखा जाता है कि जब तक व्यक्ति जिन्दा है और कुछ कर रहा है तो समाज उनसे सीखता भी है प्रेरणा भी लेता है लेकिन उनके जाने के बाद कुछ श्राद्धांजलि संवेदनाओं के साथ समाज उन्हें आए गये में भूल जाता है और वे नीव के पत्थर सदैव नीव पर ही अस्तित्व विहीन रह जाते हैं। लेकिन पुस्तक के लेखक ऐसे व्यक्तित्व हैं जों ऐसे नीव के पत्थरों को अपनी कलम पर उकेर कर पुस्तकों में सदैव के लिए चिरंजीवी स्तुत्य बनाते हैं।

          पुस्तक के आमुख में लेखक लिखते हैं कि शेष का क्षेत्र कम नहीं अपरिमित है, शेष हर ताप में तपे हुए ऋषियों की कृति है। विशेष अगर विरल है तो शेष अविरल। शेष से हम जितना ग्रहण कर सके उतना कम है। शेष कर्मठता, सहजता, सादगी, निश्छलता और तमाम मानवीय मूल्यों के प्रतीक रहे हैं। शेष ही वे नीव के पत्थर हैं जिनके बल पर विशेष की इमारत खड़ी हुई है। बिल्कुल विशेष की इमारत खड़ी होती है और होती रहेगी। शेष ना हो तो विशेष होने की संभवना ना के बराबर रहती है और दुनियां का इतिहास गवाह है कि शेष की बुनियाद पर ही विशेष के भवन खड़े हुए हैं चाहे क्षेत्र विषय कुछ भी रहा हो। 

          पुस्तक में पहला आलेख ऋषितुल्य साहित्यकार सुदामा प्रसाद प्रेमीजी की स्मृति पर है जिसमें प्रेमी जी के पूरे जीवन वृन्त व साहित्य वृन्त का उल्लेख तो है ही पर एक बहुमुखी साहित्य प्रतिभा की दीनता की विभौर करने वाली कहानी भी सामने आती है। फिर अपने से सवाल उठता है कि क्या दुन्यां को अपने चिन्तन से चेतना देना अपराध था कि जो उन्हें इतनी दीनता में जीवन यापन करना पड़ा ? साथ में एक ऐसे दृड इच्छाशक्ति वाले व्यक्तित्व का परिचय होता है जो घौर अभवों मे भी अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वहन करते हुए कभी भी कलम से मोह भंग नहीं करते हैं। साथ में एक और बिडंबना सामने दिखती है कि जब किसी कला साहित्य या अन्य विशिष्ट प्रतिभाओं की संतति उनकी राह के इतर अन्यत्र दूसरी राह पर जीवोपार्जन करते हैं तो उनका अपने पितृ कला धरोहर पर ज्यादा मोह नहीं रहता है, जिससे वह धरोहर बक्सों व स्टोरों में सदा के लिए गलके समाप्त हो जाती है, लेखक की इस बात की चिन्ता उन सभी सृजनकर्ताओं के लिए भी है कि जब उस धरोहर को संभालने वाला परिजन सक्षम नहीं होते तो क्या सरकार या उससे तालुक रखने वाले लोगों का दायित्व नहीं होता कि उसे संभाला जाय ? 

          दूसरा आलेख कागज के बिन्दू से भूगोल के सिंधु तक का महायात्रीभावांजली में डॉ कुँवर सिहं नेगीजी के जीवनवृंत को जींवत किया गया है। सुरूवात में लेखक कहते हैं कि गंगा से जुड़े हरेक पत्थर की अलग-अलग संघर्ष गाथाएँ हैं। कह नहीं सकते कौन-कौन पत्थर कितने गिरे-पड़े, किस-किस पत्थर ने कहाँ-कहाँ कितने घाव सहे। बिल्कुल एक बेडोल पत्थर बिना संघर्षों के घाव सहे बिना गोल घळमळकार सुन्दर गंगलोड़ा नहीं बन जाता ? अनगिनत ठोकरों के बाद ही कोई पत्थर गंगलोड़ा बनता है। एक साधारण सैनिक से भारत की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में ब्रेल लिपी के जनक, ब्रेल लिपी में सभी भारतीय धर्म दर्शन व ग्रंथों को तैयार करने वाले अति विशेष प्रतिभा के दर्शन होते हैं, वास्तव में डॉ नेगी ऐसे पूजित गंगलौड़े हैं जिन्हें लिंग रूप में स्थापित किया जाना चाहिए। इस कृतित्व वृन्त आलेख में भी लेखक के सम्मान भाव व पैनी पारखी नजर की झलक मिलती है कि डॉ नेगी की जन्मभूमि अयालगाँव में उनकी स्मृति स्वरूप अब उनके घर की मात्र दो दिवारें शेष रह गई हैं, इसे पलायन की विभीषिका कहें या अपनों की उदासीनता दोनो सही हो सकते हैं और ये भी अरुचिकर व चिन्तनीय है कि उनके ही परिवार और गाँव की नई पीढ़ियां उनके रचना संसार से अपरिचित हैं।

          पुस्तक के तीसरे आलेख में विडम्बना देखिये ! खबर बनने में भी पाँच माह लग गयेचिन्तन पंक्ति से ख्यातिनाम साहित्यकार श्रेधेय कुलदीप रावत जीको श्रद्धांजलि के साथ साहित्य में उनके योगदान को उधृत किया गया है। दिल्ली प्रवास में रहते हुए अपनी थाती-माटी के लिए समर्पित कलम के दर्शन होते हैं और साथ में साहित्य और शिक्षा के लिए आजीवन समर्पित रहने वाले मनीषी का अद्भुत त्याग देखने को मिलता है कि उन्होने अपने देह दान करके अपूर्व मोक्ष प्राप्त किया।

          चौथे आलेख में नक्षत्र वेधशालादेव प्रयाग के संस्थापक आचार्य पं. चक्रधर जोशीजी की अद्भुत कार्यशाला के दिग्दर्शन के साथ उस मनीषी के कृतित्व से परिचित होते हैं जो आज के समय में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा प्रतीत होता है। यह आलेख हमको हमारी संनातन मीनीषा, वेद तथा खगोल शास्त्रों की प्रबलता का भान तो कराता ही है बल्कि देवभूमि उत्तराखण्ड के महान वेदवेत्ता व अध्येता के  दर्शन भी कराता है। और मै व्यक्तिगत रूप से सभी सनातनियों से अनुरोध करता हूँ कि एक बार जरूर इस वेद संग्रालय की यात्रा करें और उस मनीषी के श्रमसाध्य का अवलोकन करें कि अगर इच्छाशक्ति हो तो एक व्यक्ति अपने जीवन में क्या कुछ नहीं कर सकता है वो भी उस काल में जब ऋषिकेश से उपर सड़क मार्ग नहीं था। 

          भले कुछ दशक पहले उत्तराखण्ड आम देश वासियों को मात्र अरण्य लगता हो लेकिन इस अरण्य ने अद्भुत साधकों को जन्मा है, इन्हीं साधकों में से थे बिन्दास जीवन शैली के गढ़ साहित्यकार चिन्मय सायर। पाँचवे आलेख में इन्हीं चिन्यम सायर, सुरेन्द्र सिंह चौहान जी का जीवन वृन्त व साहित्य वृन्त देखने को मिलता है और जानने को मिलता है सुरेन्द्र सिंह चौहान जी का चिन्यम सायर होने का सफर। जानने को मिलती है शब्दों के अक्षय संपदा के धनी कलमकार की प्रतिभा। लेखक के ही शब्दों में कि कठैत जी मै हिन्दी का शायर नहीं गढ़वाली का सायर हूँ याने गढ़वाली और हिन्दी में तालव्य के उच्चारण का भेद। भले आज गढ़वाली साहित्यकार हिन्दी के चश्में से हिन्दी के तालव्य का स्तेमाल करते हैं लेकिन गढ़वाली उच्चारण में एक ही याने दंती का इस्तेमाल होता है। शिक्षक की अनुकूल आजीविका होने के बाद भी पलायन से पलायन करने वाले चिन्मय सायर अपनी माटी में ही रहकर आजीवन अपनी भाषा के उन्नयन मे निमग्न रहे। साथ में आलेख में चिन्मय जी की प्रमुख कविताओं को भी प्रंसग गत उधृत किया गया है। भूल से आप/पलायन करें, यह मूर्खतापूर्ण विचार व्यवहार स्वीकार्या है/ सजग रहें/ताम-झाम लेकर/ न लौटना हो/ तो माइग्रेट करें / शान भी रहेगी / सम्मान भी होगा। इतनी गहरी पंक्ति के कलमकार को मेरा नमन। 

          छठवें आलेख में ऐसे नीव की ईंट का जीवन वृन्त का उल्लेख है जिन्होने इस उत्तराखण्ड के अस्तित्व के लिए अपने अस्तित्व की चिन्ता नहीं की और आजीवन कलम और कर्म से उत्तराखण्ड के लिए समर्पित रहे। ऐसे कर्म प्रधान शिखर पुरुष थे यमकेश्वर हेंवल घाटी के सुपुत्र प्रताप शिखर। आलेख में जन आंदोलनो के अग्रदूत व गढ़वळि भाषा के सशक्त कलमकार प्रताप शिखरकी जाग्रत और धधकती जीजीविषा का दर्शन होता है। मेरे जैसै कितने असंख्य लोग होंगे इस माटी में जो प्रताप शिखर  जैसै व्यक्तित्व से अपरिचित होंगे, इसी लिए शब्दों की चाटुकारिता नहीं शास्वत सत्य है कि कठैत जी जैसे विरल लोग होंगे जो ऐसे व्यक्तित्वों को समाज के पर्दे पर लाते हैं। धन्य है प्रताप शिखरका परताप व नेरेन्द्र कठैत जी का श्रम।

          बल, ‘बिराणा लाटै हैंसी अर अपणा लाटै रुवै। यह गढ़वाळी औखाण आम सामाजिकता के लिए आइना है। दावे के साथ कहा जा सकता है कि पौड़ी परिधि में कितने लोग हैं जो पुष्पा बहिन को जानते होगें। और जानते तो होंगे पर कितने लोग है जिन्होने अभाव में भाव वाली इस प्रतिभा को आंका होगा ?  लेखक ने सातवां आलेख श्रद्धासुमन स्वरूप अर्पित किया है एक गुमनाम प्रतिभा के लिए जिसने जीवन के अल्पकाल में बिना हथेलियों के इस क्रूर समाज की रोटी पाथ कर एक मुकाम हासिल किया। और आगे साहित्य व संगीत के क्षेत्र में ऊँची उड़ान के लिए अपने पंखों को मजबूत कर ही रही थी कि नियति को कुछ और मंजूर हुआ और वह बहुमुखी प्रतिभा सदैव के लिए इस धरती से रुख्सत हो गई । आलेख हमारे इस आत्ममुग्द समाज को भी आईना दिखाता कि यह समाज दिव्यांग प्रतिभाओं का उपहास ही करता है सबल नहीं देता, नहीं तों दोनो हथेलियों से हीन प्रतिभावान शिक्षिका और कवियित्री पुष्पा बहन के जाने की खबर को इस वृहद संचार के युग में जगह कैसी नहीं मिलती।

          पुस्तक का आठवां आलेख श्रधांजलि स्वरूप अर्पित किया है प्रसिद्ध व प्रिय कलावंत श्रधेय बी. मोहन नेगी जी को, जो उनके देहावसान पर लेखक की 26 अक्टूबर 2017 की फेसबुक वाल से उधृत है। बी. मोहन नेगी जी से लेखक का आत्मीय प्रेम ही था कि उन्होने श्रधेय नेगी जी की पहली पुण्य तिथि पर ही उनके जीवन व कृतित्व पर दो पुस्तकें हमारे बीच लाये। बी. मोहन नेगी जी जितने प्रिय और श्रद्धा के पात्र लेखक के हैं उतने ही हम सबके थे और रहेंगे, क्योकि लाल दाड़ी मा हंसदी सु मुखड़ी कब्बि कै फर पिड़ै नी। हाँ इस आलेख में एक महत्वपूर्ण विषय नजर ठिठक जाती है कि बी. मोहन नेगी कला संग्रहालयएक सोच एक विचार उस तपस्वी कलावंत के किये का असली सिला। जिसका निर्माण आज भी मात्र एक सोच तक सीमित है, जिस पर हम उत्तराखण्डी साहित्य समाज व सरकार को आत्मग्लानी होनी चाहिए। 

          नहीं रहे शिक्षाविद् बिशन सिंह नेगी। नवाँ आलेख शिक्षा के शिखर पुरुष श्रधेय बिशन सिंह नेगी जी के जीवन वृन्त को हमारे सामने रखता है। लेखक के शब्दों में कि बहुत कम लोग होते हैं जो अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठ होते हुए भी सदैव विशिष्ट या श्रेष्ठता के लबादे से जीवन पर्यन्त दूर रहते हैं, ऐसे लोग पन्नों से ज्यादा दिलों में उतर जाया करते हैं। हाँ दिलों में उतर जाया करते हैं पर ! कौन ?  जो उनको जानने वाले रहे होंगे । लेकिन लेखक ने उन्हें कागज के पन्नों पर उतार चिरकाल के लिए मेरे जैसे पाठक के दिल में उतार दिया जिसका दूर तक भी ऐसे मनीषी से वास्ता नहीं था। यह प्रेरक जीवन वृन्त अभाव में भाव की जीवन्ता को समाज के सामने लाता है कि एक छ्व्यरा (अनाथ) बालक तब के अभाव ग्रस्त काल में अपनी लगन और कर्म श्रेष्ठता से शिक्षा के ऊँचे से ऊँचे पायदान को हासिल करके हजारों बच्चों के लिए जीवन ज्योति बनता है।

          भगवती प्रसाद नोटियाल जी! पंच तत्व में लीन। अंतिम समय में सभी बंधु बांधव, ईष्ट मित्र! और कलमकार बंधु मात्र तीन। हैरान करने वाले इस शीर्षक से शेष स्मृति शेषका दशवां आलेख वयोबृद्ध साहित्यकार श्रद्धेय भगवती प्रसाद नोटियाल जी की स्मृति में है, अपनी भाषा साहित्य के लिए समर्पित नोटियाल जी जैसे विरले लोग मिलते हैं जो अपनी भावी पिढ़ीयों के लिए कुछ करने का जतन करते हैं लेकिन दुनियां ऐसे भगीरथ कार्यों में कहाँ साथ देती साब ? लेखक नोटियाल जी के साथ वार्ता का उल्लेख करते हैं कि सन 1985  में श्री नोटियाल जी, श्री दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल जी और श्री लोकेश नवानी जी ने पाँच-पाँच सौ रूपये मेलाख करके गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठानकी स्थापना इस उद्देश्य के लिए की थी कि ग़ढ़वाली में ज्यादा से ज्यादा लिखा जाय, ग़ढ़वाली लेखकों का एक मंच बनाया जाय लेकिन राम की माया तमाम देहरादून दिल्ली में चौथा आदमी का साथ नहीं मिला। मंच के गठन के चार दशक बाद भी वो चौथा कलमकार उनकी अर्थी को कन्धा देने वाला नहीं हुआ, इस उपेक्षा को देखते हुए सचमुच सवाल उठते हैं कि हमारे ग़ढ़वाली साहित्य समाज में आज भी जो फुक्क आग लगा रौण द्या वाला नजरिया है वह आत्मचिंतन का विषय है, यही अपनी ढपली अपने राग के चलते श्री कठैत जी की बात कि भुला इस कारण आज भी हमारे साहित्य का एक पुस्तकालय नहीं बन पाया। सच में सच्ची और करड़ी कलम का साथ देने से लोग कतराते हैं।

          फेसबुक की सूनी वाल के उस पार खड़ी एक दिवार शीर्षक से ग्यारहवाँ आलेख निर्भीक कलम, घुमक्कड़ चलन, समाज और साहित्य सेवी पेशे से पत्रकार श्रद्धेय एल. मोहन कोठियाल जी को श्रद्धांजलि स्वरूप अर्पित किया गया है। श्री कोठियाल जी ऐसे पहाड़ हितेषी थे कि पूरी सक्षमता के होते हुए उन्होने खुद को आम गृहस्थी बंधन से दूर रखा। इस भू लोक पर वे जितने भी समय रहे ग़ढ़वाल के लिए समर्पित रहे, मुझे भी चकबंदी की संगोष्ठीयों में उनका सानिध्य मिला। शालीन, सहज़, कम बोलने वाले और ज्यादा करने वाले उस व्यक्तित्व का मैं भी मुरीद था। वास्तव में कोठियाल जी ने अपनी ऋषिचर्या से इस थाती के लिए बहुत कुछ करना था लेकिन उपर वाले को आपकी ज्यादा जरुरत होगी म्येल्यौ।

          पुस्तक का बारहवाँ आलेख समर्पित है श्रीमती लीला देवी जी की स्मृति में, जिनके व्यक्तित्व का प्रभाव लेखक के जीवन पर रहा, नीति सम्मत है साब जब जीवन से अपने आदर्शों का हाथ उठता है तो बहुत कुछ होने के बाद भी एक रीतापन रहता है, लेखक द्वारा अपनी सासु माँ की श्रद्धा में लिखा गया छोटा आलेख बड़ी सीख देता है। लेखक के शब्दों में कि मेरे लेखकीय पक्ष पर भले आपने कभी खुल कर परिचर्चा नहीं की हो लेकीन आपकी मौन स्वीकृति रही, आपसे ही सीखा कि भाषा, आस्था और निष्ठा का विषय है खोखली वस्तु नहीं। सुधी जनों की पहचान ही होती है कि वे हर रिस्ते हर जन से सीखने वाली चीज निकाल लेते हैं और अपने साथ औरों के जीवन को दिप्तमान करते हैं।  

          तेहरवां स्मृति आलेख समर्पित किया गया है ग़ढ़वाली लोक धुनों के राही चंद्र सिंह राहीजी को, जो राही जी की प्रथम पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि स्वरूप लेखक द्वारा लिखा गया था। राही जी हमारे लोक संगीत के जिस स्तर के मर्मज्ञ थे उस स्तर पर उनके कृतित्व पर काम होना बाकी है जिसे लेखक शिष्टाचार वार्ता में कितनी बार कह चुके हैं। राही जी हमारे लोक वाद्यय विद्या के विरले साधक थे, सर्वज्ञ थे, विरले लोक गीतकार और गायक। कौन सा ऐसा वाद्यय यंत्र है जिसे वे शास्त्रीय सम्मत बजाना नहीं जानते थे। उन जैसा कलाकार आज सायद ही कोई देखने को मिलता है। आलेख में राही जी द्वारा लोक वाद्ययों की स्थति पर जो चिंतन उकेरा गया है वो वास्तव में चिंता का विषय है। आज पाश्चात्य जगत के कनफौड़ा वाद्यय यंत्र हमारे लोक वाद्ययों की चिता का कारण बन गई कहना गलत नहीं होगा। संस्कृति के सच्चे साधक की चिंता पर लोक संस्कृति के वाहकों को गौर करना जरूरी हो गया है। श्री राही जी जिस ऊँचे कद के कला मर्मज्ञ थे उस ऊँचाई का ना तों आजतक उन्हें कोई सम्मान मिला और ना ही उनका व्यक्तिगत जीवन उस स्तर का रहा। राही जी द्वारा एक सभा के प्रसंग से उनकी विपन्नता झलकती है, वे कहते हैं कि बल, लोग मुझे दूर-दूर से प्रोग्रामों में आमन्त्रित करते हैं और एवज में भेंट करते हैं स्मृति चिह्न और शौल, और जब में घर में आता हूँ तो स्या (घरवाली) बोलदी कि सु कटगा खाण छौरन। सायद उनकी नेक दिली थी कि उन्होने कभी अपनी कला का दाम नहीं लगाया।   

          पुस्तक का चौदहवां स्मृति आलेख है पहाड़ के चार्ली चौम्पयन - सिताब सिंह कुंवर जीपर। सायद आप भी नहीं जानते होंगे उन्हे जैसे मै भी इससे पहले नहीं जानता था क्योंकि उनकी कला का दायरा छोटा रहा था। छोटा इस लिए भी रहा होगा कि उस प्रतिभा ने अपने लोक को ही प्राथमिकता दी हो। लेखक ने उन्हें पहाड़ के चार्ली चौपियन की उपाधि दी यह लेखक के नाट्य गुरू होने के नाते व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय भी हो सकता लेकिन कुंवर जी की रचनात्मक व जीवन वृन्त को पढ़कर आप सभी कहेंगे कि इससे भी बड़ी कोई उपाधि हो तो वो भी कम है। अद्भुत कला के धनी श्री कुंवर जी ने जिस तरह अपनी संस्कृति को जिया उसका संवर्धन किया वह वंदनीय है। समसामयिकी व सरकारी तंत्र की बिडंबनाओ को वे अपनी स्टैंडिंग कॉमेडी/प्रहसन के माध्यम से हैंसी हैंसी चटताळमारते थे बल, कि घपकताळ भी लग जाऐ और घाव भी ना दिखे। वे संवाद से कम और हावभाव से ज्यादा बिंगा देते थे बल। आलेख में कुंवर जी की कला के कई रोचक प्रसंग देखने को मिलते हैं। कहते हैं कि महत्व इस बात का नहीं कि आप कितना जिए बल्कि इस बात का है कि कैसे जिए। मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति विशेष तभी है जब उसमें शेष रहने की क्षमता है, भागफल हमारे जीवन तक ही रहता है लेकिन शेष चिरकाल तक, और यही शेष कुंवर जी छोड़ कर गए हैं जिसे और दीर्घकाल के लिए स्थापित करने का श्रम श्री कठैत जी की कलम ने किया है।

          जैसा कि लेखक के शब्दों में कि शेष ही वे नीव के पत्थर हैं जिन पर हर विशेष की ईमारत खड़ी होती है । आज के भव्य उत्तराखंड के भवन की प्रथम नीव की ईंटों में शामिल श्रीमती सुंदरी नेगी जी के संघर्षनामें का विवरण पुस्तक के पंद्रहवे व आख़री आलेख में दिया गया है। और यह संघर्षनामा तब का है जब पृथक उत्तराखंड होगा इसकी सोच पहाड़ में दूर दूर तक भी नहीं थी। सत्तर के दशक का पूर्वार्द्ध सन् 1973-74, तब मैं भी पैदा नहीं हुआ था। बाबा बमराड़ा जैसे राज्य आंदोलन के अग्रदूत के साथ दिल्ली से एक महिला क्रन्तिकारी सुंदरी नेगी पौड़ी में आकर अनशन पर बैठती है और पहाड़ को जगाती है कि उठा रे स्यावा ना अपने हितों का राज्य मांगो। श्रीमती सुंदरी देवी के कई सामाजिक संघर्षों का उल्लेख आलेख में मिलता है। हमारे समाज की हमेशा से यही बिडम्बना रही कि समाज ऐसी विभूतियों को जल्द भूल जाता है और समाज के लिए उनका योगदान गुमनामी हो जाता है।

          अंततः पूरी पुस्तक का अवलोकन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि एक सच्चे कलमकार का दायित्व श्री नरेन्द्र कठैत जी ने निभाया और निभाने का मतलब केवल इतना नहीं कि नीव पर बैठे गुमनाम पत्थरों को कंगूरे पर लाने की कोसिस की, बल्कि साथ में समाज को आईना के साथ दूरदर्शिता भी दिखायी, कि जिन पत्थरों के उपर आज हम सबका सांस्कृतिक व सामाजिक भवन खड़ा है उनको क्यों भूलाया गया/ जा रहा है ? जबकि वे अपूर्व शेष छोड़ कर गए हैं। क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए कि जीवन का आखिर सत एक लकड़ी देने तक की भी मंशा नहीं रखते ?  ऐसे कई गंभीर सवालों से लेखक द्वारा झकझोरा गया है। इस अप्रीतम कृति के लिए भैजी नरेंद्र कठैत जी का मैं व्यक्तिगत आभार प्रकट करता हूँ कि आपके माध्यम से ही हमें हमारे नीव के पत्थरों को जानने को मिला। साथ में यह आशा करता हूँ कि यह पुस्तक उत्तराखंड के हर उस युवा के हाथ तक पहुंचे जो उत्तराखंडियत से प्यार करता है।

          चलते चलते सभी लोक हितेषियों से अपील करता हूँ कि कलावंत श्रद्धेय बी. मोहन नेगी जी कला संग्राहलयहेतु श्री कठैत जी की सोच को अमली जामा पहनाने के लिए आगे आएं, अपने सुझाव दें और उत्तराखंड के एक महान कलाकार की कला को चिरकाल तक जीवंत बनाने में अपना सहयोग करें, नहीं तो कुछ पीढ़ीयों बाद उनकी कृतियों से भरे  बक्से भी सुदामा प्रसाद प्रेमी जी की तरह गुम हो जायेंगे।

@ बलबीर सिंह राणा अडिग


13 Dec  2024