देवकी वसुदेव नन्दन कृष्ण चंद वंदनम
धरा सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।
घोर घटा श्रावणी स्याह रात्रि आगमनम
जगदीशश्वरम विष्णुबिपुलम् सुंदरम्
मोर मुकुट मुरलीधर चंचल मृदुचपलम्
सहस्र वन्दन हे सारथी यशोदा-नन्द नन्दनम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
पावन बाल चरित नटखट गोकुलधामम्
गोपीयों संग रांस रचित प्रीत वृन्दाबनम्
कृत्य अचंभितम् मायावी पूतना बधम्
इन्द्र दम्भम चूर-चूरम हस्त गिरी गोवर्धनम्
धरा अति सुशोभितम्अ भिनन्दनम् बिन्दम्
पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम्
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम्
काली नागनथनम कंसकाल कवलितकम्
धरा शुचि संकल्पम प्रभुदहन पापनाशकम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
स्वर्णिम उषा सुखद निशा बृज भूमि आनंदम्
तिमिर लोप, जहां विराजे कण-कण राधेश्वरम्
हर मन-हृदय वसियो यशोदा श्यामा सुकोमलम्
राधा रुकमणी जिगर योगेश्वर बृजभूषणम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
अद्वितीय बलम पांडव दलम रण महाभारतम्
पार्थ सारथी कुशल नेतृत्वम युद्धम कुरुक्षेत्रम्
गीता अमृतम अमूर्त पवित्रम मनु आजीवनम्
सर्वत्र व्याप्त प्राणी-प्राण, भूतभविष्यम केशवम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
सदमति दे हे महांबाहो उत्थान दे सर्वेश्वरम
ज्ञान क्षशु प्राकाश दे सद्भाव वत्स वत्सलम
हिन्दसुत कर्मप्रधान हो सुर-शोर्य आत्मबलम
रक्ष दक्ष परिपूर्ण सुपुष्ठम जग श्रेष्ठ हो भारतम
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'