दिवाकर संग पथ गहे, स्वीकारें तप्त धूप।
जागृत हो कर्म साधना, मिटे हिय अंध कूप।।
जागृत हो कर्म साधना, मिटे हिय अंध कूप।।
कर्म संधान लक्ष्य पहुँचे, फिर बजे विजय शंख।
सार्थक हो काज तेरे, सकल लगाए अंक।।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
https://youtu.be/AOu69Pvab_g?si=t9kCSD4i8eZX3m-E
5 टिप्पणियां:
सुंदर
बहुत बढ़िया
तत्प या तप्त धूप, सुंदर दोहे
aabhar mahodya sahi pade , naman
गुरूजी आभार
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