25 वर्ष अतीत
में मेरी स्कूल गुरू आश्रम हुआ करती थी। अच्छी तरह याद है मुझे हमारे गुरूजन
निस्वार्थ भाव से हरसम्भव अपने विद्यार्थीयों को ज्ञानार्जन कराते थे, और विद्यार्थी तन, मन धन से गुरू सेवा
करते थे। हमारी अतरिक्त पाठ शाला आमतौर पर रात्रि में लगती थी जिसे हम बसेरा का
नाम देते थे हम बोरिया बिस्तर के साथ स्कूल में ही रहा करते थे विषेशकर पांचवीं और
आठवीं बोर्ड परिक्षा के विद्यार्थी इस आश्रम के हिस्से हुआ करते थे। अच्छी तरह याद
हैं वे बसेरा की रातें जब मध्यरात्रि में पढते पढते हमें नींद के झोंके में हेाते
तब हमारे गुरूजी हमें भारतीय दर्शन की कहानियां सुनाये करते थे कितना र्निविकार
कर्म था वह जब शिक्षक सच्चे रूप से अपने गुरूधर्म का निरवहन करते थे। लेकिन
वर्तमान आते आते यह धर्म व्यवसायिक और केवल कर्मो की इतिश्री रह गया है। आज ना ही
विद्यार्थी और अविभावक का शिक्षक के प्रति विश्वास और श्रधा है, ना ही शिक्षक का अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा है। आज शिक्षा
का भवन धन की लोलुपता पर खडा है जिससे
विद्यार्थी को किताबी ज्ञान तो मिल जाता परन्तु आत्मज्ञान नहीं मिल पाता
जिस आत्मज्ञान पर सच्चे जीवन का सृजन होता है फलस्वरूप सत्ता के लोलुपी मनुष्य का
निर्माण होता जो भ्रष्टाचार का संवाहक बन जाता है। शिक्षा का यह स्वरूप कहीं ना
कहीं वर्तमान सामाजिक विभत्सिकाओ के लिए जिम्मेवार ठहराया जा सकता है।
बलबीर
राणा "भैजी"
5 सितम्बर 2012
2 टिप्पणियां:
आज कल के पंजीकृत बुध्दजीवी ऐसा शिक्षक होते है जो सुबह जगता है और फेसबुक पर गुडमार्निंग लिख कर सो जाता है । और जब फिर उसकी नींद खुलती है तो वह
बह जल्दी जागने के लाभ पर किताबों का ज्ञान दिन भर देता है ।
ऐसे सभी तमाम शिक्षकों को मेरा सादर नमन .. ईश्वर करे इनसे किसी भी छात्र का कभी पाला ना पड़े ।
इस मायायुग में में सब कुछ मायावी हो गया. शिक्षक भी और विद्यार्थी भी. देश, काल, परिस्थितियां इन्सान को बदल ही देती है. परन्तु इस सबके बाद भी कुछ हैं जो नहीं बदले और शिक्षक होने का अर्थ बता रहे हैं.
शिक्षक दिवस पर ऐसे गुरुओं को नमन !
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