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राष्ट्रभाषा अपनी
क्षीणतर हो चली
हिन्दी
का हिंग्लिस बन खिंचडी बन चली
अपनो के
ही ठोकर से
अपने ही
घर में पराई बनके रह गयी
आज
विदेशी भाषा अपने ही घर में घुस
मालिकाना
हक जता रही
उसके
प्यार में सब उसे सलाम बजा रहे
यस नो
वेलकम सी यू कहकर
शिक्षित
सभ्य होने की मातमपुर्षी बघार रहे
अंग्रेजी
बोलने वाला कुलीन शिक्षित है
ना बोलने
वाला गंवार अनपड
राष्ट्रनेता
हिन्दुस्तान के
राष्ट्रभाषा
के नाम पर ऊँचा भाषण
ऊँची
योजना बनाते
नाक रखने
के लिए कभी कभार
रोमन में
लिखी भाषण कुंडली
हिन्दी
में पढ लेते
नयीं
पीडी हिन्दी बोल तो लेते
पढ लिख
नही सकते
नयीं
पीडी के आदर्श बने
खिलाडी
चलचित्र सीतारे
हिंग्लिस
की गिटपिट से
हिन्दी
की रूप सज्जा करते फिरते
अब वो
दिन दूर नहीं
संस्कृत
की तरह हिन्दी भी
पूरी तरह
उपेक्षित होने वाली है
ज्ञान
विज्ञान के भण्डार ग्रन्थ
पुस्तकालयों
के में
चिस्कटों
के शूल से जीवन की आखरी शांसे गिनने वाले हैं
ग्रन्थो
का विदेशी अनुवाद
अपभ्रंषक
होकर और ही अर्थ समझाने वाले हैं
हिन्दी
की दशा या दुर्दषा के लिए
कौन
जिम्मेवारी लें
तुम्हें
क्या पडी रहती साहित्यकारो
हिन्दी
की दुर्दषा पर लिखते
रहते
राष्ट्रभाषा
ठेकेदारों की तरह तुम भी
हिन्दी
दिवस पर वार्षिक कर्म कांड कर लो
पितृ
पक्ष के श्राद्ध की औपचाकिता निभा लो
बलबीर राणा "भैजी"
१३ सितम्बर २०१२
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