लालसा
जीवन की आश तु ही जगाती
खुल जाते
मन के कपाट
ओर-पोर जुड जाते दिल के तार
तन सावधान
ऑखों में चमक
कान अडिग खडे
वाणी मृदु से भी मृदु
भुजा पकडने को आतुर
पगों की गति बढ जाती
इन्द्रियां अपने गन्तव्यों में सजग
कुछ छूट ना जाये
मौका चूक ना जाये
तेरे बिना
जीवन की कर्म क्रियायें
निरीह निष्क्रीय
तेरा सुमार्ग सफलता को
कुमार्ग बिफलता को
आज तक मैं
भ्रमित
कहां से आगमन तेरा
किधर को निगमन
तु आगे मैं पिछे
कुछ हाथ में
आ जाता
कुछ छूट
जाता
नाता तोड ना
देना
साथ छोड ना
देना
जीवन कि
ज्योति जगाते रहना
……………………बलबीर
राणा "भैजी"
1 सितम्बर 2012
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