शिक्षक दिवश पर
गुरुजनों के चरणो में अपने मन की भवनाओं को सर्मपित करता हूँ उन्हीं के ज्ञानदीप के
प्रकाश से इस संसार को सही मायनो में देख पाया हूँ।
गुरू सत्य है
सुन्दर है सर्वोपरि है
अलौकिक विद्या का
भण्डार है
गुरू संकट मोचन है
आज्ञान रूपी दानव
का संहारक है
गुरू गागर में सागर
है
जिसमें भरा
सम्पूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान है
गुरू ज्योतिपुंज से
जीवन प्रकाशामान है
गुरू स्नेहल नीर से
ऊसर बुद्धि सिंचित
है
गुरू अमृतवाणी से
जग प्रेम अमर है
गुरू स्वच्छ जल
श्रोत से
ज्ञान पिपाषा तृप्त
है
गुरू मार्गदर्शन से
जीवन सनमार्ग पर
अग्रसर है
गुरू ज्ञानदीप से
भविष्या दैदीप्यमान
है
गुरू ब्रह्मास्त्र
से
अज्ञानता का समूल नाश
है
गुरू ज्ञान की
अविरल धारा
जीवन प्रयन्त
चलायमान है
गुरू तेरे
ज्ञान की मशाल
मन में
सदैव प्रज्वलित रहे
गुरू तेरे
र्निविकार उपकार को कैसे भूलूं
तु ही जीवन का खेवन
हार है।
बलबीर राणा "भैजी"
5 सितम्बर
2012
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