दुनियां तेरे रंग भी अजीब हैं
आचरण की नियमावली में
दोहरे संस्करण, दोहरे मानदंड
अपनाती है।
अपने लिए कुछ और,
दूसरों से कुछ और व्यवहार चाहती है।
लाडला अपना गलती करे नॉटी कहके पूचकारे जाये
पडोसी का महा बिगडा कहलाये।
परिक्षा में फेल होने पर,
दूसीरों का लडका आवारा और नाकाबिल कहलाता है
अपना किशमत मारा होता है।
लडकी जब दूसरे लडकों
से बतियाये, घूमे
अपनी खुले विचारों
की (फेक) कहे
जाती
वही पडोसी की हो, चाल चलन पर अंगुली उठायी जाती।
काम बिगडे दूसीरों का
अजी !!!!!. हमारी कौन सुनता........ छत्तीस मीन मेख निकलते,
जब यही अपने पर बन आये..... ग्रह खराब के बहाने
लगते।
जब बच्चा नौकरी अपना पाये,
किस्से कामयाबी के घर घर बताये जाते।
दूसरों के मिलेने पर,
सब सेटिंग और जुगाड का चक्कर होता है।
अपनी सफलता का श्रेय,
अपनी काबलियत है ।
वहीं विफलता पर, वाह्य करकों के कारण गिनाये
जाते।
यहां तक घर आये मेहमान से क्या लाये हैं की
अपेक्षा होती।
वहीं अपने आप जाने पर कुछ तो देंगे ही की चाहत होती।
मनुष्य तेरी इस दोरूखी प्रवृत्ति क्या कहें ?
बलबीर राणा "भैजी"
०३ सितम्बर २०१२
1 टिप्पणी:
प्रभावशाली वाक्य. मानव स्वभाव है यह. सारी दुनिया का यही दस्तूर है.
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