मिलन घडी
मिलन घडी की ज्यों निकट आती
बिरह बेदना और बढ जाती
मन चंचल ब्याकुल
और ब्याकुल
दिल की धडकन तेज
थाह ना ले
सरपट निगाह घडी पर
अभी तो पूरा दिन बाकी
सुबह से ’ांय
‘
दिन से रात का
गुजरने का इन्तजार
लम्हंे लम्बे हो जाते
कलेन्डर देखता
अभी तो महिना बाकी
मिलन की तडफन
और तडफाती
यादों का सेलाब
उमडताए घुमडता
बेग मारता
आॅखों में तस्बीर उभरती
हॅसती हुई स्वागत करती
आगो’ा
में भरने को
बाहें खुल जाती
यका यक तन्द्रा टुटती
ठगा रह जाता
घडी मिलन की ज्यों निकट आती
बिरह बेदना और बढ जाती
10 अगस्त 2012
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