शनिवार, 18 अगस्त 2012

नि रैणु अजाण



नि रैणु अजाण भै बन्दो
नी छुपोण पच्छांण

कुछ तुम सुणावा
कुछ मी सुणोलू

कुछ मी बोलुला
कुछ तुम बोला

दिल की गेड खोली जोला
दूर ह्वे की भी समणी रोला

सुखः दुखः लगोला
प्रीत की रीत निभोला

कम ह्वे जान्दू मन कू बोझ
ज्यू हलको  ह्वे जान्दू

जुदा ह्वगे  अब बाटा घाटा
अलग ह्वगे खाण कमोण

अब छूटिगे मोर मंगरा
बिसरी गे छुल्लु चौक

अरे एकी गौं गुठिठयार का छों हम
एकी बोली भाषा चा हमारी

नी हूण अपणा मां बिराणु
नि रैणु अजाण
नि छुपोण पच्छांण
............. बलबीर राणा "अडिग"

कोई टिप्पणी नहीं: