नि रैणु अजाण भै बन्दो
नी छुपोण पच्छांण
कुछ तुम सुणावा
कुछ मी सुणोलू
कुछ मी बोलुला
कुछ तुम बोला
दिल की गेड खोली जोला
दूर ह्वे की भी समणी रोला
सुखः दुखः लगोला
प्रीत की रीत निभोला
कम ह्वे जान्दू मन कू बोझ
ज्यू हलको ह्वे जान्दू
जुदा ह्वगे अब बाटा घाटा
अलग ह्वगे खाण कमोण
अब छूटिगे मोर मंगरा
बिसरी गे छुल्लु चौक
अरे एकी गौं गुठिठयार का
छों हम
एकी बोली भाषा चा हमारी
नी हूण अपणा मां बिराणु
नि रैणु अजाण
नि छुपोण पच्छांण
............. बलबीर राणा
"अडिग"
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