आज हमारा मेडिकल क्षेत्र लगातार ऊचाइयां छूता जा रहा है जहॉ मेडिकल साइंन्स की आधूनिकता ने आज असाध्य से असाध्य रोगों को साध्य बना दिया वहीं इस क्षेत्र में आम जन पर हो रहे भावनात्मक अत्याचारों को झुटलाया नहीं जा सकता। इसे प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष रूप से सभी महसूस कर सकते है। माफ करना जो लोग इस प्रोफिशन से हैं जुडे है वे इस बात को अन्यत्र लें क्यों की मामला भावनाओं का है वो तो प्रकट होंगी ही !!! फिर सभी एक ही श्रेणी में भी तो नहीं आते ??
कहां जाऊं ?
किसके पास जाऊं?
चरों तरफ होडिंग टंगी,
बडे बडे इस्तिहार छपे,
डिग्रियों से भरा बोर्ड,
पहले आओ , पहले इलाज पाओ,
बिना चीर फाड के ऑप्रेशन कराओ,
डिस्काउन्ट पाओ लिमिटेड टाइम,
लाइन लगाने से निजात लगाओ,
घर बैठे फोन सेे अप्वाइटमेंट पाओ,
पर्ची कटाओ और मोटा परामर्श शुल्क जमा कराओ,
बिलम्ब मत करो ?
जल्दी ये टेस्ट कराओ, पूरी इन्वेस्टिगेशन होगी,
अच्चा पैंसा लगाओ,
बेहतर इलाज़ कराओ।
जैसे भी हो सहाब...... भला कर दो
पैंसे का बन्दोवस्त कर दूगां,
यार - रिश्तेदार से मांगूंगा,
कहीं से कर्जा निकालूगा, जड जमीन बेच दूंगा,
फीस पूीर करूंगा,
मर्ज छोटा ही क्यो ना हो !!
सारे टेस्ट और इन्वेस्टीगेशन कराऊॅगा
दिन -दिन, हप्ते, महीने चक्कर कटता रहूँगा
बाद में रैफर हो जाऊंगा
कुछ ना कहूँगा
क्यों कहूँगा क्यों कहूॅगा ?
जिन्दगी का सवाल जो है!!!!
भगवान से कहूॅगा कुछ अनर्थ हो जायेगा।
क्या करें ?....डॉक्टर सहाब,.भगवान का रूप होंते है ।
क्योकि भगवान, भावनाओं को ज्यादा समझते हैं ।
अत्याचारी !! नहीं नहीं !!!
भगवान !!! और अत्याचार ?
भगवान अत्याचार नहीं करते
अत्यचार का नाश करते है ।
थोडा.... थोडा..... भावनाओ का करते हैं.........अत्याचार
भावनाओं का अत्याचार !!!!!! इतना चलेगा
भावनाओ क्या है आती जाती रहती हैं।
मरने से तो ठीक है।
........... बलबीर राणा "भैजी"
२३ अगस्त २०१२
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