किशोरवय जीवन का वह समयांतराल है जिसे सही मार्गदर्शक और एक मजबूत सहारे की जरुरत होती है इसी किशोरवय में ही कल के सुनहरे भविष्य की सुद्रिड नीव रखी जा सकती है, और इसी नीव पर एक आदर्श और सम्पूर्ण जीवन रुपी भवन खड़ा होता है समय पर सहारा रुपी पथप्रदर्शक न मिला तो बिना सहारे की जैसी बेल जमीं पर लिपट लिपट के अपना बजूद खोजती रहेगी और लताएँ भ्रमित होकर चरों दिशाओं में हाथ बढाती रहेंगी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें