रविवार, 12 अगस्त 2012

गढकवि नरेन्द्र सिह नेगी




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गढकवि नरेन्द्र सिह नेगी
श्री नरेन्द्र सिह नेगी की छवि मन में इस कदर बैठी है कि दिल से निकली आवाज शब्दों के रूप में परिलक्ष्ति होती प्रतीत हो रही है सबुं की अन्वार त्वे मां
सरु गढवाल त्वे मा
सुखीयों कु सुख त्वे मां
दुखीयों कु दुख त्वे मां
डाडियों की रौनक त्वे मा
कांठीयों की चमक त्वे मां
पलायन की पीडा त्वे मां
बेरोजगार की संवेदना त्वे मां
गौं कु दर्द त्वे मां 
दाना सयोणु की लाचारी त्वे मा
ब्वे की ममता मां
पिता कु दुलार मां
ध्याणी की पीडा मां
भैजीयेां  कु प्यार मां
ज्वान खुदेड ब्वारी माया मां
फौजी भुला की ज्वानी मा
मायादारों की माया मां
नयुं ब्यौ कु उलार मां
बुडिडयों की रस्यांण मां
जख देख तख तुम
उत्तराखण्डियों दिल मा तुम
मन मां तुम
हे गढ रत्न
जतगा बोला उतगा कम
अब शब्द नी बलबीर भैजी  मा
30 शाल बटि तेरी जगेयीं यु जोत
जै का उज्याला मां
उत्तराखण्ड की सस्कृति चमकणी चा
जुग - जुग जियां जुगराज रय्यां
प्रस्तुति....... बलबीर राणा भैजी 

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

नरेंद्र सिंह जी तो हमारे गढ़वाल की शान हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति