क्या ? सचमुच विकाश हो रहा,
या बदलाव में भटकाव हो
रहा !!!
संस्कृति, संस्कार,
पाश्चात्य बेहूदापन के पीछे घिसट रहा I
गीत संगीतं,
बियर बार, नाईट क्लबों की चकाचौंध में खो गया I
मॉ, बाप, बुजुर्गो का
आदर,
रहनुमायी बन गयी I
नाते रिश्तों में अपनापन,
औपचारिकता बन गयी I
बहु, बेटीयों की लाज,
मार्डन उघडता में उड रही I
मर्यादायें,
फैशन बन कर रह गयी I
सयुंक्त परिवारों की एकता,
एकलता के चलन में
बिखर गयी I
घर, गॉव, चौपालों की रौनक
फ्लेटों की अटालिकाओं में गुम हो गयी I
बोली – भाषा,
बिदेशी भाषा के पर्दे में छुप गयी I
तीज त्यौहारों का मिलन,
समय की कमी से टल रहा I
ज्ञान और आत्मज्ञान में,
अहंकार पाल गये I
विद्यालय
और शिक्षा केन्द्र,
व्यवसाय
केन्द्रों में बदल गयें I
क्या ? सचमुच विकाश हो रहा,
या बदलाव में भटकाव हो
रहा !!!
19 अगस्त 2012
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