माँ
भारती का रक्षक
दंश कितने झेलने भी पड़े
खुसी - खुसी झेल जाऊंगा
रास्ता क्यों ना कंटक भरा हो
हंसी - खुसी चला जाऊंगा
उफ़ न निकले जुबां से मेरे
ये कसम कहता हूँ
अडिग हूँ अडिग ही रहूँगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ठिठुरता रह जाऊंगा
शीत भरी
लहरों को ऐसे ही
सीने पर सह जाऊंगा
जो भी रोड़ा राह में आये
ठोकर उसे मार जाऊंगा
अडिग हूँ अडिग ही रहूँगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
तिरंगे पर तिरछी नजर रखने वालो
आँख में तीर चलता जाऊंगा
हुंकार अगर भरी दुश्मनी की तो
सांसे बंद कर जाऊंगा
मेरी धरती पे कदम बढ़ा के देखो
पग वहीँ तोड़ जाऊंगा
अडिग हूँ अडिग ही रहूँगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
हवा,
पानी,
समुद्र कहीं भी
अडिग खड़ा दिख जाऊंगा
माँ भारती के रक्षा के खातिर
जान पे अपनी खेल जाऊंगा
कसम गीता की खायी में
हर हाल में निभाता जाऊंगा
अडिग हूँ अडिग ही रहूँगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
चक्कर
लगता जाऊंगा
असाम से कछ भुज तक
निगाह
दौड़ता जाऊंगा
जहाँ भी दुश्मन पर मारे
पर वहीँ कुत्तर जाऊंगा
अडिग हूँ अडिग ही रहूँगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
ये विश्वाश दिलाता हूँ
माँ भारती का रक्षक हूँ
फर्ज निभाता जाऊंगा
रचना -: बलबीर राणा "भैजी"
०९ अगस्त २०१२
1 टिप्पणी:
सभी मित्रों और सुभाचिन्तकों से अनुरोध है की अपने विचार प्रकट करके होंसला अफजाई करे
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